भोपाल(देसराग)। मध्य प्रदेश में लगातार पड़ रही भीषण गर्मी और धूप की तपिश की वजह से आम आदमी बेहद परेशान है। इस बीच लोगों का बीमार होने का भी दौर चल रहा है, लेकिन प्रदेश के करीब साढ़े चार सौ अस्पतालों में एक भी चिकित्सक न होने से लोगों की मुसीबतें और बढ़ी हुई हैं। हालात यह हैं कि इन अस्पतालों के अंतर्गत आने वाले इलाकों में कोई बीमार पड़ता है तो उसके इलाज के लिए परिजनों को शहरी इलाकों की ओर दौड़ लगानी पड़ती है। यह हालात है प्रदेश के ग्रामीण परिवेश के।
सरकार की उदासीनता की वजह से लोगों को बीमारी में इलाज से राहत देने के लिए खोले गए सैकड़ों प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उपस्वास्थ्य केंद्र खुद ही चिकित्सकों के अभाव में बीमार पड़े हुए हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में लोगों के सामने इलाज का संकट बना हुआ है। स्वास्थ्य विभाग की एक रिपोर्ट में हुए खुलासे के अनुसार प्रदेश के करीब 446 प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टरों के नहीं होने से पूरी तरह से ठप पड़े हैं, तो कुछ में ताले लटके हुए हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में गर्मी के कारण बिजली, पानी के साथ लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य ने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
खास बात यह है कि पढ़ाई करने के बाद चिकित्सक बनने वालों को वैसे तो ग्रामीण इलाके में सेवा देने का नियम है, लेकिन सरकार इस नियम का पालन कराने में लगातार असमर्थ साबित हो रही है। खास बात यह है की इनमें कई प्रभावशाली और बड़े नेताओं वाले इलाकों के अस्पताल भी इसमें शामिल हैं।
बनने के बाद से लगा हुआ है ताला
सतना जिले के रामपुर बाघेलान की पंचायत कूद में 2019-20 में उप स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण हुआ। यहां तभी से ताला लगा है। थोड़ी सी भी स्वास्थ्य समस्या होने पर 10 किमी दूर रामपुर बाघेलान जाना पड़ता है। उधर, जिला मुख्यालयों के जिला चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि पीएचसी में इलाज नहीं मिलने से जिला अस्पताल में दबाव बढ़ता है। सीएचओ सिस्टम शुरू होने से फायदा मिला है। लू, उल्टी-दस्त, पेट में जलन के मरीज बढ़े हैं। गांवों में इलाज नहीं मिलने से जिला अस्पतालों में ज्यादा मरीजों का आना स्वाभाविक है।
यह है बड़ी वजह
मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर वैसे तो हर साल दो हजार युवक डॉक्टर बनते हैं लेकिन इनमें से आधे ही सूबे के मरीजों को मिल पाते हैं, जिसकी वजह से चिकित्सकों की कमी की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है। दरअसल, इस तरह के कई खुलासे मप्र मेडिकल काउंसिल द्वारा शुरू की गई री-रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में हो रहे हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में मौजूदा समय में हर साल लगभग 2 हजार डॉक्टर बनते हैं, जिनमें से हर साल करीब 6 सौ से लेकर 8 सौ डॉक्टर एनओसी लेकर दूसरे राज्यों में सेवाएं देने चले जाते हैं।
इस तरह के हैं हाल
अगर जिलों के अस्पतालों की स्थिति देखी जाए तो किस जिले में कितने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना डॉक्टर के हैं उनमें सर्वाधिक संख्या छिंदवाड़ा जिले में 39 है। उसके बाद सतना, मंदसौर और बालाघाट का नबंर आता है। इन जिलो में 25-25 अस्पतालों को डाक्टरों का इंतजार बना हुआ है। इसी तरह से बैतूल जिले में 20,सीधी में 17, डिंडौरी और सिवनी में 15, खरगोन में 14, छतरपुर में 13, भिंड, टीकमगढ़, शहडोल, खंडवा, राजगढ़ और मंडला में 11, कटनी, पन्ना, सागर, सिंगरौली और उमरिया में 10-10, रीवा में 09 , जबलपुर, नरसिंहपुर, नीमच, रतलाम, उज्जैन जिले में 8-8 , बुरहानपुर और अनूपपुर में सात-सात देवास, रायसेन और विदिशा में 6-6, धार में 5, अलीराजपुर में 4,गुना, अशोकनगर, नर्मदापुरम और शिवपुरी में 3-3, मुरैना, दमोह, दतिया, बड़वानी, इंदौर, शाजापुर जिले में दो -दो, ग्वालियर, आगर मालवा, हरदा, सीहोर और श्योपुर जिले में 1-1 अस्पताल शामिल हैं।