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Thursday, Dec 7, 2023
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विचार

खून-आलूदा उपलब्धियां @ 8 साल

राकेश अचल
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार की आठवीं साल गिरह पर उन्हें ढेर सारी बधाइयां देने का मन है। ये बधाइयां उनकी अपनी उपलब्धियों के लिए बनतीं हैं। इन्हें विपक्ष या देश की तमाम जनता माने या न माने किन्तु जो उपलब्धियां हैं सो हैं। दुःख केवल इतना है कि उनकी तमाम उपलब्धियों पर नाकामियों की गर्द और जम्मू-कश्मीर में बहने वाला निर्दोषों का खून भी लगा हुआ है।
आज ही के दिन यानि 26 मई को भाजपा-2014 के मुकाबले 2019 में एक बड़ी जीत के साथ सत्ता में लौटी थी इस बड़ी जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में शुरू की गई तमाम कल्याणकारी योजनाओं ने अहम भूमिका निभाईं। हालांकि साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो उनके सामने कई चुनौतियां थीं। मोदी की चुनौतियाँ आज भी कम नहीं हुईं हैं। उनकी सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस मुक्त भारत की थी,जो आज भी अधूरी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने देश की अधिकाधिक जनता को बैंकों से जोड़ने के लिए जनधन खाते खुलवाए। कोई 45 करोड़ खाते खुले भी लेकिन इनमें से अधिकांश या तो बंद हो गए या फिर उनका इस्तेमाल एक बार से दूसरी बार नहीं किया गया, लेकिन उपलब्धि तो उपलब्धि है। इसे नकारा नहीं जा सकता। इन खातों के जरिये हितग्राहियों को जहां मदद दी गयी वहीं अब किसानों से वसूली भी की जा रही है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की स्वास्थ्य योजना की तर्ज पर शुरू किये गयी आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना से सरकार ने देश के 10 करोड़ परिवारों के 50 करोड़ लोगों को मुफ्त इलाज देने का दावा किया है। मुमकिन है कि ये दावा सही भी हो क्योंकि पहले से देश के 80 करोड़ परिवारों को मुफ्त में अन्न देने की भी एक योजना चला रही है।
कोई माने या न माने लेकिन मै मानता हूँ कि मोदी जी ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव-गांव में शौचालय बनवाकर महात्मा गांधी के अधूरे सपने को पूरा करने की कोशिश की, भले ही इन शौचालयों के लिए जनता के पास पानी न हो और वे इनमें सूखे कंडे भर रहे हों। इसमें योजना का या प्रधानमंत्री जी का कोई दोष नहीं है। प्रधानमंत्री जी की गरीब कल्याण योजना का जिक्र मै कर ही चुका हूं जो सितंबर 2022 तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त 5 किलो अन्न दिला रही है। अब ये बात अलग है कि इस अन्न को गरीब खाते हैं या सूंघते हैं कोई नहीं जानता। प्रधानमंत्री की उपलब्धियों में जनजीवन मिशन को भी जोड़ सकते हैं जिसके तहत 2 साल में 5.5 करोड़ घरों में नलों के जरिये पीने का पानी पहुंचाने का दावा किया जा रहा है। प्रधाममंत्री आवास योजना को भी आप मोदी जी की उपलब्धियों में जोड़ सकते हैं।
मोदी जी प्रधानमंत्री के रूप में दुनिया में अपनी झप्पियों के लिए मशहूर हैं ही। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वे हमेशा किसी सवाल का जबाब नहीं देते लेकिन पत्थर पर लकीर खींचने की अपनी कला का प्रदर्शन अवश्य करते हैं। बीते तीन साल में प्रधानमंत्री जी जम्मू-कश्मीर की फ़ाइल को नहीं निबटा पाए, हां उन्होंने विवेक अग्निहोत्री को आशीर्वाद देकर ‘दी कश्मीर फ़ाइल’ फिल्म जरूर बनावाई और उसे रातों रात करोड़पति बनवा दिया। पूरे देश को रुलाया, नेहरू-गांधी को गालियां दिलवाईं लेकिन कश्मीरी पंडित आज भी सड़कों पर बैठकर न्याय की मांग कर रहे हैं। कश्मीर में आतंकियों ने टीवी कलाकार अमरीन भट को गोलियों से भूनकर प्रधानमंत्री जी की तमाम उपलब्धियों को लाल कर दिया।
एक प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी उपलब्धियों की गाथा आज पार्टी के सभी जनप्रतिनिधि गली-गली में गए जरूर हैं लेकिन सबके सब घबड़ाये हुए हैं। देश में एक तरफ आतंकवाद बढ़ रहा है,दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता अपने पर पसार रही है। प्रधानमंत्री जी जैसे-जैसे सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं वैसे-वैसे देश में कहीं न खुद उनके लोग दंगों को भड़का देते हैं। आजकल पुराने गड़े हुए मुर्दे उखाड़ने और हिन्दू जागरण का अजीब खेल चल रहा है। देश की अदालतों में अतीत में तोड़े गए मंदिरों पर तत्कालीन मुस्लिम शासकों द्वारा बनाई गयी मस्जिदों को हटाने की जिद पर काम चल रहा है।
देश में ये पहला मौक़ा है कि कोई गैर कांग्रेसी सरकार अपना आठवां जन्मदिन मना रही है इसलिए हर्ष होता है लेकिन दुःख भी होता है क्योंकि देश की मुसीबतें लगातार बढ़ भी रहीं हैं। मंहगाई को सरकार ने अपना खिलौना बना लिया है जब चाहती है तब बढ़ा देती है और जब चाहती है तब घटाने का नाटक कर दिखाती है। जाहिर है कि मंहगाई परिस्थितिजन्य नहीं है। होती तो फिर अचानक कम कैसे हो सकती है? मंहगाई की लगाम सरकार के हाथों में है। सरकार के खिलाफ आंदोलन करने वाले किसानों को सबक सिखाने के लिए इस बार गेंहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गयी किसान कहीं से ज्यादा न कमा लें।
कभी-कभी अच्छा लगता है कि सरकार और सरकारी पार्टी देश को कांग्रेस मुक्त बनाने के साथ ही सियासत को राजनीति से मुक्त करने की बात करती है। लेकिन बुरा तब लगता है जब कुछ कर नहीं पाती। कांग्रेस के परिवारवाद को कोसने वाली सरकारी भाजपा पार्टी ही इन दिनों परिवारवाद की सबसे बड़ी पोषक बनी हुई है। हर राज्य में राजनीति परिवारवाद के सहारे चल रही है। परिवार का मतलब सिर्फ रक्त संबंधियों के परिवारवाद से नहीं होता। अटल जी का तो मोदी जी की तरह कोई परिवार नहीं था किन्तु उनकी बहनें,भतीजे,भांजे सब राजनीति का लाभ ले रहे थे। यहां तक कि उनके दत्तक दामाद भी बहरहाल लेकिन उन्होंने मोदी जी की तरह कभी देश को कांग्रेसमुक्त या परिवार मुक्त करने का अभियान नहीं चलाया,क्योंकि वे जानते थे की संघ से बड़ा परिवार भारत में कोई दूसरा है ही नहीं।
मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है भारतीय रुपए का अवमूलयन। भाजपा के ही पैमाने पर इस उपलब्धि को कसा जाये तो ये प्रधानमंत्री की अलोकप्रियता का सबसे बड़ा उदाहरण है। मोदी जी की सरकार रोज लुढ़कते शेयर बाजार को नहीं सम्हाल पा रही है। डालर के मुकाबले आज भारतीय रुपया 77 रुपए 69 पैसे पर आ गया है, लेकिन हमारी सरकार को न कोई लज्जा है और न अफ़सोस। होना भी नहीं चाहिए क्योंकि सरकार ने कभी नहीं कहा था की वो रुपए की सेहत का ख्याल रखेगी। मोदी जी की खुशकिस्मती है कि देश का विपक्ष बिखरा हुआ है। सरकारी पार्टी को ही जब-तब विपक्ष की भूमिका भी निभाना पड़ती है। आखिर लोकतंत्र में विपक्ष ही न हो तो क्या आनंद?
बहरहाल हम सब उम्मीद करते हैं की मोदी जी को भगवान शक्ति दे की वे खुद भी गिरने से बचें और देश के रुपए को भी गिरने से बचाएं। बाक़ी सियासत तो चलती रहेगी। देश में शांति और सद्भाव बना रहे, इसके लिए यदि मोदी जी अपने शेष दो साल में कुछ कर पाएंगे तो ठीक है अन्यथा देश का जो होना है सो होकर रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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