ग्वालियर(देसराग)। मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव होने हैं। जब भी चुनावों का ऐलान होता है तो ग्वालियर-चंबल अंचल में पुलिस की धड़कनें तेज हो जाती है, क्योंकि चुनावों में यहां अवैध हथियारों की तस्करी बढ़ जाती है और इसको रोकना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है। यही वजह है कि पंचायत चुनाव का ऐलान होने के बाद पुलिस ने अब अपने मुखबिर तंत्रो को मजबूत करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही ग्वालियर-चंबल अंचल के बॉर्डर पर तेजी से सख्ती लाने के निर्देश दिए हैं, क्योंकि अंचल में भारी मात्रा में अवैध हथियारों की तस्करी की जाती है और इसका उपयोग चुनावों में लोगों को डराने, धमकाने और हत्या के प्रयासों जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है।
पड़ोसी राज्यों से होती है तस्करी
ग्वालियर-चंबल इलाका वैसे तो डाकुओं के नाम से बदनाम है। अब इस इलाके में डाकू तो नहीं रहे लेकिन अब यह इलाका अवैध हथियारों की तस्करी के लिए जाना और पहचाना जाता है। ग्वालियर-चंबल अंचल में अवैध हथियारों की तस्करी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा से होती है। हालांकि पुलिस लगातार अवैध हथियारों को लेकर कार्रवाई भी करती रहती है। इसके बावजूद अवैध हथियारों का तस्करी का खेल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। चंबल में अवैध हथियारों की तस्करी उस समय कई गुना बढ़ जाती है जब चुनाव का ऐलान होता है। पंचायत चुनाव के ऐलान के बाद अंचल में अवैध हथियारों की तस्करी में लगातार तेजी की संभावना है। यही वजह है कि अवैध हथियारों को रोकना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती है।
चुनाव के दौरान अवैध हथियारों का ज्यादा उपयोग
मध्यप्रदेश में में पंचायत चुनाव होने हैं। ऐसे में हर बार देखा जाता है कि पंचायत चुनाव में लोग अपनी राजनीतिक दुश्मनी के साथ-साथ, आपसी रंजिश और डराने, धमकाने के लिए अवैध हथियारों का सबसे ज्यादा उपयोग करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि चुनाव के वक्त लाइसेंसी हथियार थाने में जमा हो जाते हैं और इसी के चलते लोग अवैध हथियारों का ज्यादा उपयोग करते हैं। यही वजह है कि चुनाव के समय ग्वालियर-चंबल अंचल में सबसे ज्यादा अवैध हथियार खरीदे जाते हैं और उसका उपयोग चुनाव में किया जाता हैं। हर बार चुनावों में अवैध हथियारों के जरिए हत्या के प्रयास, रंगदारी जैसे कई दर्जनों घटनाएं सामने आती है, जिससे पूरा चुनाव प्रभावित होता है।
अंचल में एक लाख से ज्यादा शस्त्र लाइसेंस
ग्वालियर-चंबल अंचल में लगभग एक लाख से अधिक शस्त्र लाइसेंस है। अकेले ग्वालियर की बात करें तो 32000 लाइसेंसी बंदूक हैं, जो प्रदेश में सबसे ज्यादा है। चुनाव के वक्त यह सभी शस्त्र लाइसेंस और हथियार थाने में जमा हो जाते हैं। ऐसे में चुनाव के वक्त सिर्फ अवैध हथियार ही काम आता है। यही वजह है कि अंचल में हथियारों की तस्करी करने वाले गिरोह ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं।
पिस्टल और कट्टे का इस्तेमाल
चंबल के चर्चित उप पुलिस अधीक्षक रहे सेवानिवृत्त एसडीओपी केडी सोनकिया ने बताया कि ग्वालियर-चंबल अंचल में जब भी चुनाव होते हैं, तब अवैध हथियार लोगों के लिए सबसे ज्यादा मददगार बनते हैं, क्योंकि चुनावों में आपसी रंजिश और डराने, धमकाने के लिए अवैध हथियारों का उपयोग किया जाता है। अवैध हथियार के रूप में सबसे ज्यादा इस्तेमाल पिस्टल और कट्टे का होता है। जो अंचल के बॉर्डर से गुजर कर गांव-गांव या फिर शहरों में सप्लाई होते हैं। अवैध हथियार तस्कर उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान से हथियार लाकर यहां पर लोकल गैंग को सप्लाई करते हैं और यहां के बाद यह चारों तरफ फैल जाता है।
चुनाव के वक्त अवैध हथियारों के रेटों में भी काफी इजाफा होता है। बताया जाता है अवैध कट्टा 3 से 5 हजार तक बेचा जाता है तो वहीं पिस्टल 8000 से 12000 के बीच में बेची जाती है। इसको लेकर कांग्रेस का कहना है कि चंबल अंचल वह इलाका है, जहां पर हर बार चुनावों में उपद्रव होता है और सबसे ज्यादा अवैध हथियारों की तस्करी की जाती है। इसलिए सरकार और जिला प्रशासन को इन अवैध हथियारों को लेकर सख्त होना चाहिए, क्योंकि इन अवैध हथियारों की वजह से चंबल अंचल का चुनाव प्रभावित होता है। उधर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश दंडोतिया का कहना है कि यह बात सही है कि चुनाव के वक्त पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती अवैध हथियारों की तस्करी और खरीद-फरोख्त को रोकना होता है। ऐसे में पंचायत चुनाव हैं और अभी से पुलिस ने अलग-अलग टीमें गठित कर दी है, जो सिर्फ अवैध हथियारों की तस्करी पर निगाह रखेगी। इसके साथ ही ग्वालियर चंबल के बॉर्डर पर मुखबिर तंत्र भी मजबूत कर दिया हैं।