मुकेश तिवारी
जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के सभी 4 आयामों खाद्य उपलब्धता, खाद्य पहुंच, खाद्य उपयोग और खाद्य प्रणाली स्थिरता को प्रभावित करेगा। कड़वा सच है कि यदि धरातल का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो इंसानो के समक्ष 2050 तक पेट भरने के लिए अनाज जुटाना मुश्किल हो जाएगा।
वर्तमान दौर में कृषि पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर पड़ रहा है, बदलते मौसम के प्रभाव से सिर्फ फसलों का उत्पादन ही प्रभावित नहीं हो रहा है, बल्कि उनकी गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है,यह देश की खाद्य सुरक्षा के लिए अहम चुनौती बन रही है। एक अनुमान के अनुसार यदि 2040 तक तापमान में 1-5 डिग्री तक इजाफा होता है तो फसलों की पैदावार पर इसका गंभीर असर पड़ेगा, इस चेतावनी को भविष्य की महज संभावना की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि अगर हम अभी से नहीं चेते तो यह खतरा निश्चित है। इस तरह जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ रहा है तो अप्रत्यक्ष प्रभाव आमदनी की हानि और अनाजों की बढ़ती दरों के रूप में परिलक्षित हो रहा है।
ज्ञात रहे कि कृषि की उत्पादकता बढ़ाने में उपजाऊ मृदा, जल, अनुकूल वातावरण कीट पतंगों से बचाव आदि की भूमिका रहती है प्रत्येक फसल को विकसित होने के लिए उचित तापमान उचित प्रकार की मृदा वर्षा तथा आंधी की जरूरत होती है लेकिन इनमें से किसी भी मानक में फेरबदल होने से फसलों की पैदावार काफी हद तक प्रभावित होती है। जबकि आने वाले दिनों में देश की जनसंख्या में इजाफा होगा ऐसे में प्रथक प्रथक फसलों की मांग बढ़ेगी, मगर जलवायु परिवर्तन इस राह में मुश्किल उत्पन्न करेगा। लिहाजा कृषि नीति को जलवायु परिवर्तन के जोखिम से निबटने के लिए फसल उत्पादकता में सुधार और सुरक्षा जाल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा तभी हम खाद्यान्न सुरक्षा जैसे संकटों से जूझ सकते हैं। जलवायु परिवर्तन खाद सुरक्षा के सभी चार आयामों खाद उपलब्धता, खाद्य पहुंच, खाद्य उपयोग और खाद्य प्रणाली स्थिरता को प्रभावित करेगा कड़वा सच यह है कि यदि धरातल का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो हमारे सामने खाने का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
तापमान की बढ़ती गति को देखें तो आंकड़े बोलते हैं कि इस सदी के अंत तक धरती का तापमान 3.7 डिग्री से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा जिसका सीधा असर खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ेगा। उदाहरण के लिए आज जहां गेहूं, सरसों और आलू की खेती हो रही है तापमान बढ़ने से इन फसलों की खेती कदापि नहीं हो सकेगी, क्योंकि इन फसलों को ठंडक की आवश्यकता होती है। ठीक इसी प्रकार अधिक तापमान बढ़ने से मक्का,धान,ज्वार आदि फसलों का क्षरण हो सकता है क्योंकि इन फसलों में अधिक तापमान के कारण दाना नहीं बनता है अथवा कम बनता है, इससे इन फसलों की खेती करना असंभव हो सकता है।
तापमान वृद्धि से वर्षा की किल्लत
इसके अतिरिक्त तापमान वृद्धि से वर्षा में कमी होती है जिससे मिट्टी में नमी समाप्त हो जाती है। भूमि में निरंतर तापमान की कमी व वृद्धि से अप्रक्षय की क्रिया प्रारंभ हो जाती है इसके साथ तापमान वृद्धि से गंभीर सूखे की संभावना बलवती हो जाती है। इतना ही काफी नहीं जलवायु परिवर्तन मिट्टी की सेहत को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है क्योंकि बढ़ता तापमान प्राकृतिक नाइट्रोजन की उपलब्धता कम कर रहा है और इसे बढ़ाने के लिए हम रसायनिक खादों का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं जो मिट्टी की उर्वरता को काफी प्रभावित कर रहा है।
सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक 46 साल में 68 प्रतिशत पशु पक्षी घट गए हैं। 2050 तक इंसानों को पेट भरने के लिए भी अनाज मिलना मुश्किल हो जाएगा। तेजी से घटते जंगल, दूषित नदियां, बर्बाद होती मिट्टी, बढ़ती प्राकृतिक आपदाएं और जहरीली हवा ने मानव जीवन के लिए बड़े खतरे उत्पन्न कर दिए हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण द्वारा जारी ताजा साला रिपोर्ट के मुताबिक 11 मार्च से 18 मई 2022 के मध्य 16 राज्यों में हीट वेव चली यानी तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री ज्यादा रहा।
आज समूचे विश्व में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ रहा है एवं इसका प्रभाव कहीं ज्यादा तो कहीं कम देखने में आ रहा है। जलवायु परिवर्तन जोखिम सूचकांक में हम शीर्ष 20 देशों में शामिल हैं, पिछले 40 वर्षों में हमारी धरा का तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है इसके कारण बाढ़ सूखे और तूफान जैसी आपदाएं भी बढ़ी हैं क्योंकि अपने मुल्क में अधिकांश कृषकों के पास छोटा रकबा है इसलिए इन आपदाओं के कारण उनकी आमदनी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बढ़ते तापमान का संकट हिंदुस्तान पर मंडरा रहा है। इसलिए जलवायु परिवर्तन के फल स्वरुप उत्पन्न चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में ऐसे तरीकों की समीक्षा किया जाना बेहद जरूरी है जिसके द्वारा हमारे किसान जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न चुनौतियों का सामना करते हुए फसल का उत्पादन कर सकें एवं उन्हें फायदा भी हो सके, साथ ही कृषि से उनका मोहभंग भी न हो। क्योंकि जलवायु परिवर्तन किसी एक देश अथवा क्षेत्र तक सीमित नहीं है इसलिए इसमें कमी लाने के लिए सभी स्तरों पर ठोस उपाय की जरूरत है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि जलवायु परिवर्तन न केवल कृषि के लिए बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए भी खतरे के रूप में सामने आया है। कोई भी मुल्क इसकी तपिश से बच नहीं सकता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)