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Thursday, Dec 7, 2023
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चुनावी दौर में मेडिकल बोर्ड पर सवाल खड़े करते कलेक्टर के आदेश

भिंड/रीवा(देसराग)। कलेक्टर के आदेश ने जिले भर के अधिकारी और कर्मचारियों की नींद उड़ा रखी है। कलेक्टर साहब का आदेश है कि चुनाव के समय बीमार पड़ने पर मेडिकल बोर्ड का प्रमाणपत्र लगाने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस दे दिया जाएगा। इस आदेश के जरिए ना सिर्फ अधिकारी-कर्मचारी में दहशत है, बल्कि विशेषज्ञों द्वारा मेडिकल बोर्ड में बनाए गए प्रमाणपत्र पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

कलेक्टर का तुगलकी फरमान
प्रदेश में इन दिनों त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की प्रक्रिया चल रही है। त्रिस्तरीय चुनावों के लिए अधिकारी और कर्मचारियों की ड्यूटी पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में लगाई जा रही है। ऐसे में भिंड और रीवा कलेक्टर ने ड्यूटी से बचने के लिए मेडिकल लगाने वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई की चेतावनी दी है। ऐसा नहीं कि चुनाव में ड्यूटी से बचने वालों को चेतावनी देता नोटिस पहली बार निकला हो, लगभग हर जिले में चुनाव से पहले इस तरह के आदेश निकलते हैं, लेकिन, भिंड और रीवा कलेक्टर द्वारा जारी किया गया आदेश तुगलकी फरमान माना जा रहा है।

यह है भिंड कलेक्टर का आदेश
कलेक्टर द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि निर्वाचन ड्यूटी से बचने के लिए जो भी अधिकारी, कर्मचारी बीमारी का प्रमाण पत्र लेकर आएंगे उनके खिलाफ शासन के नियम अंतर्गत 20 वर्ष की सेवा अथवा 50 वर्ष की आयु के तहत अनिवार्य सेवानिवृत्ति की कार्रवाई की जाएगी।

रीवा कलेक्टर ने भी जारी किया आदेश
चुनाव के मद्देनजर लोक शिक्षण संचालनालय ने अवकाश निरस्त कर दिए हैं। रीवा कलेक्टर द्वारा 27 मई को जारी आदेश में कहा गया है कि पंचायत निर्वाचन में संलग्न अधिकारियों और कर्मचारियों के द्वारा अपनी अस्वस्थता के कारण निर्वाचन कार्य सम्पादन में असमर्थता बताई जा रही है। इनके द्वारा निर्वाचन ड्यूटी से बचाव के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी कार्यालय में मेडिकल बोर्ड/आवेदन प्रस्तुत किए जा रहे हैं। कलेक्टर के आदेश में कहा गया है कि ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध शासन के नियमों के आधार पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की कार्यवाही की जाएगी।

मेडिकल लेने पर वीआरएस देने का फैसला
इस आदेश के सम्बंध में जब भिंड कलेक्टर सतीश कुमार एस से बात की गई तो उनका कहना है कि चुनाव की ड्यूटी से बचने के लिए ऐसे कई कर्मचारी हैं, जो अपनी वर्षों पुरानी बीमारियों का बहाना लेकर ड्यूटी विलोपित कराने का प्रयास करते हैं। ऐसे कर्मचारियों के लिए हमने सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया है। क्यूँकि जो कर्मचारी लम्बी बीमारी के चलते रूटीन ड्यूटी नहीं कर पा रहे है। नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में शासन के नियमानुसार उन्हें 20 वर्ष का कार्यकाल या 50 वर्ष की आयु के तहत वीआरएस देने का निर्णय लिया गया है।

अचानक तबियत बिगड़ने पर राहत, पुरानी बीमारियाँ नही चलेंगी
आदेश के सम्बंध में जब कलेक्टर से बात की कि, शासकीय कर्मचारियों के लिए छुट्टी लेने के लिए या ड्यूटी निरस्त कराने के लिए शासकीय मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण पत्र अनिवार्य होता है, चूँकि आदेश में इस बात का जिक्र है कि मेडिकल बोर्ड से जारी प्रमाणपत्र पेश करने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। फिर यह कैसे तय किया जाएगा कि कौन असल में बीमार है या कौन बहाने बना रहा है। इस बात के जवाब में कलेक्टर सतीश कुमार का कहना था कि मेडिकल बोर्ड को भी निर्देशित किया गया है कि जो लोग इमीडिएट थ्रेड यानी अभी बीमार हुए हों और ड्यूटी करने की हालत में ना हो या किसी को हाल ही में या महीने भर में या एक दो हफ्ते भर पहले फ्रैक्चर हुआ हो तो उसे ड्यूटी से विलोपित रखा जाएगा, लेकिन जो लोग लम्बे समय से चली आ रही बीमारियों, बीपी या डायबिटीज जैसी बीमारियों को लेकर आएँगे और इनके आधार पर ड्यूटी नहीं करेंगे तो वे शासकीय सेवा भी करने में असमर्थ माने जाएँगे और उन्हें वीआरएस दिया जाएगा।

अब तक मिले 50 से ज्यादा आवेदन
कलेक्टर ने कहा कि यह कदम सिर्फ इसलिए उठाया गया है, ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा ड्यूटी पर रहें। उन्होंने बताया कि अब तक 50 से अधिक ऐसे आवेदन मिल चुके हैं, जो बीमारियों के चलते ड्यूटी में असमर्थता जाहिर कर रहे हैं। अब इन लोगों को लेकर मेडिकल बोर्ड द्वारा दोबारा जाँच कराकर निर्णय लिया जाएगा। अभी तक हमने इसीलिए कोई कार्रवाई नही की है।

परीक्षण के बाद जारी किया जाता है मेडिकल सर्टिफिकेट
कलेक्टर के इस फैसले ने मेडिकल बोर्ड द्वारा बनाये गए प्रमाण पत्र को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है जोकि शासन के नियम अंतर्गत ही बीमारी का प्रमाण पत्र जारी करता है। शासकीय कर्मचारियों के स्वास्थ्य परीक्षण को लेकर जारी होने वाले प्रमाणपत्र पर भिंड जिला स्वास्थ्य विभाग के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर यूपीएस कुशवाह से जब बात की तो उन्होनें बताया कि किसी भी शासकीय कर्मचारी को मेडिकल तभी जारी किया जाता है जब उसकी परिस्थिति ड्यूटी करने लायक नहीं रहती है।

परीक्षण के बाद होता है प्रमाणपत्र जारी: इसके लिए मेडिकल ऑफिसर द्वारा 7 दिवसीय, विशेषज्ञ द्वारा 15 दिवसीय और उससे अधिक आराम के लिए मेडिकल बोर्ड द्वारा परीक्षण के बाद ही प्रमाणपत्र जारी किया जाता है. परीक्षण में फेल होने पर किसी भी सूरत में मेडिकल सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जाता है। उन्होंने उदाहरण के लिए बताया कि किसी व्यक्ति को हड्डी फ्रेक्चर होने पर कम से कम 3 हफ्ते आराम करने के लिए प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। हालाँकि यह भी बताया कि चुनाव ड्यूटी के दौरान भी सिर्फ शासकीय सेवा में कार्यरत गम्भीर बीमार कर्मचारियों को ही परीक्षण के बाद मेडिकल प्रमाणपत्र जारी किए जाएँगे।

कर्मचारियों में आदेश से दहशत: सीएमएचओ डॉक्टर कुशवाह ने तो मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किए जाने के सम्बंध में तस्वीर साफ कर दी है, लेकिन यह बात भी सही है कि अक्सर चुनावों में कुछ कर्मचारी बीमारी का बहाना बनाकर ड्यूटी से बचने की कोशिश करते हैं। ऐसे में अब सवाल उठता है कि कलेक्टर के आदेश का असर तो उन अधिकारी कर्मचारियों पर भी पड़ेगा जो वास्तव में बीमार हैं और स्वास्थ्य खराब होने के चलते ड्यूटी करने में अक्षम हैं। इस आदेश से अधिकारियों कर्मचारियों में इसलिए दहशत है कि कहीं अगर वास्तव में वह किसी पुरानी बीमारी या बीपी या मधुमेह के चलते गम्भीर बीमार पड़ गए और ड्यूटी करने में अक्षम हुए तो आखिर उनका क्या होगा।

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