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Thursday, Dec 7, 2023
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विचार

बेहिसाब दौलत ही बेमिसाल

नजरिया/सोमेश्वर सिंह
आज सुबह-सुबह मैं चड्डी बनियान में चाय की चुस्की ले रहा था। अचानक एक महिला गेट के अंदर आई। वह परिचित थी। उसे 40 साल से जानता हूं। चुरहट में मायका, सीधी में ससुराल है। मोहल्ले में रहती है। हाय हेलो के अलावा उससे कोई वास्ता नहीं । पहली मर्तबा वह मेरे घर आई थी। नगरीय निकाय के चुनाव हो रहे हैं। मेरा वार्ड आरक्षित महिला आदिवासी है। मुझे लगा कि वह जरूर पार्टी से वार्ड मेंबरी के लिए टिकट की सिफारिश कराने आई होगी। मैंने उसे अदब के साथ बैठाया। हालचाल पूछा-
कैसे आई हो,
वह बोली- भैया चाय पी लीजिए, फिर बताती हूं।
मैंने कहा चाय मुंह से पी रहा हूं, सुनना तो कान से है, बोलो- कैसे आई।
उसने सारा वृत्तांत बताया।
अंत में बोली- राहुल भैया से मिलना है।
मैंने कहा- वह 4 दिन से थे। अब जा चुके हैं, तब आई हो।
उसका नाम अन्नू कोल है। चुरहट के सरकारी कोलन में उसका मायका है। उत्तर करौंदिया सीधी में ससुराल है। उसके पति को गले का कैंसर है। सीधी से रीवा तक के अस्पताल का चक्कर काट चुकी है। डॉक्टरों ने बाहर ले जाने की सलाह दी है। मोहल्ले के सभी ठाकुर द्वार में दस्तक दे चुकी है। अमूमन जब सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं, तब एक ही दरवाजा बचता है ,जहां मैं दस्तक देता हूं। घंटे भर बाद राहुल भैया का मैसेज आ गया कि उसे चिरायु हॉस्पिटल भेज दीजिए। मैसेज सुनकर वह भाव विह्वल हो गई। दिलासा देकर मैंने उसे चिरायु हॉस्पिटल के लिए विदा किया।

मेरा एक पुराना साथी हे महेश साकेत। आजाद नगर में रहता है। उमर 70 के आसपास होगी। अध्ययनशील, जिज्ञासु, दिल फेंक और जिंदादिल आदमी है। पहुंचा तो नंग धड़ंग जमीन पर लेटा था। अगल बगल बकरी के छौने विराजमान थे। बिजली गुल थी, वह पसीने में तरबतर था, उसके सिरहाने खाली गैस सिलेंडर में रस्सी से एक तंदुरुस्त बकरा बंधा था। जिसके खींचने पर सिलेंडर हिल डुल रहा था। बकरा जमीन पर बिखरे हुए कागज के हैंड बिलों को कुतर कुतर के खा रहा था। मैंने आवाज दी, वह उठा, मुझे आदर के साथ बैठाया। नगर पालिका चुनाव का माहौल है। मैंने उससे कहा तुम्हारे वार्ड से कौन चुनाव लड़ रहा है। वह मुस्कुराया और बिखरे हुए हैंड बिलों को समेटकर मुझसे कहा देख लीजिए। जिसमें लिखा था-“आठ साल बेमिसाल”।

फिर एक फिल्मी गीत गाने लगा जिसके बोल हैं-
ना चाहूं सोना चांदी, ना चाहूं हीरा मोती,
ये मेरे किस काम के,
ना मांगू बंगला गाड़ी, ना मांगू घोड़ा गाड़ी,
ये तो है बस नाम के,
देते हैं दिल दे, बदले में दिल के,
प्यार में सौदा नहीं।

महेश कहने लगा- सोम जी यह स्थानीय चुनाव हैं। इसमें वोट दल को नहीं दिल को मिलते हैं। यहां नाली नरदा, बिजली पानी, साफ सफाई, पटवारी पुलिस से काम पड़ता है। इन कामों के लिए विधायक, सांसद की जरूरत नहीं पड़ती। हमारा पार्षद ही मौके बेमौके, दिन रात काम में आता है। मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल गया था। मैं आगे बढ़ गया।

पहुंच गया सोनांचल बस स्टैंड लोकनाथ सोनी के टी स्टाल में। लोकनाथ बौद्धिक आदमी है। मुझे सरीके बौद्धिक दरिद्र, टुटपुंजिहा, निम्न मध्यमवर्गीय व्यक्ति ही वहां पहुंचते हैं। जिन्हें लोकनाथ भाई ससम्मान बैठाते हैं। व्यावसायिक आदमी घास से घोड़े की दोस्ती नहीं कराते। कोई हो, छोटा या बड़ा, सभी को सस्ते दाम पर पांच रुपए में चाय मिलती है। पिछली बार लोकनाथ दूसरे वार्ड से पार्षद का चुनाव लड़े थे। धनाभाव के कारण हार गए। मैंने कहा अब की मौका था, आपने अपने वार्ड से ही क्यों पर्चा नहीं भरा। वे जवाब दे पाते, तब तक धूम-धड़ाके के साथ एक जुलूस निकला।

जुलूस किसी महिला नेत्री का था। शायद वे पार्षदी का पर्चा भरने जा रही थी। बैंड बाजे की धुन पर महिलाएं नाच रही थीं। बेमिसाल के पर्चे बांटे जा रहे थे। किसम किसम की सुगढ़ सुंदरियां थीं। जुलूस में कुछ बलिष्ठ और कुछ कृषकाय टी शर्ट जींस तथा लकालक सफेद कुर्ता पायजामा धारी नौजवान जुल्फें लहराते हुए हाथ उठाकर जिंदाबाद बोल रहे थे। उसी समय जुलूस के सामने से एक कलोरी का पीछा करते हुए चार आवारा सांड भागे चले आ रहे थे। जुलूस देखकर सांड़ रुके और आपस में गुत्थमगुत्था हो गए। अफरा तफरी मच गई। वह दृश्य देखकर लोकनाथ हंसने लगे और बोले- देख लीजिए सोम जी, इस बेमिसाल में बेहिसाब दौलत मैं कहां से पांऊ इसीलिए पर्चा नहीं भर रहा हूं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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