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Saturday, Apr 1, 2023
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विचार

एक समग्र व्यक्तित्व डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी

मुकेश तिवारी

भारतीय इतिहास में कुछ ऐसी शख्सियत हुई हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति, सभ्यता और अखंडता की रक्षा के लिए तमाम सारे आधारभूत कार्य किए लेकिन उनकी उपलब्धियों तथा तत्कालीन परिस्थितियों में उनके द्वारा किए गए त्याग और बलिदान को सही रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया, जिसके चलते अधिकांश लोग आज भी उन जैसी शख्सियत से भलीभांति परिचित नहीं है, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसे ही शख्सियत है, जिन्होंने हिंदुस्तान के आजाद होने से पहले और आजाद होने के बाद भी हिंदुस्तान के विविध पक्षों का विकास करने तथा हिंदुस्तानी संस्कृति के मुताबिक स्वतंत्र भारत को डालने के लिए अथक परिश्रम किया जिसे सदैव याद किया जाता रहेगा

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म कोलकाता के भवानीपुर में 7 जुलाई सन 1901 को हुआ था, इनके पिता श्री आशुतोष मुखर्जी कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति थे तथा माता श्रीमती जोगमाया धार्मिक आस्था से ओतप्रोत महिला थी जिस वजह से श्यामा प्रसाद मुखर्जी का लालन-पालन धार्मिक व सांस्कृतिक वातावरण में हुआ था, भारत की संस्कृति के साथ साथ भारतीय और विदेशी विचारों के प्रति ज्ञान अर्जित करने की तीव्र उत्कंठा थी।

श्याम प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा मित्रा इंस्टिट्यूट कोलकाता में हुई थी, वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के मेधावी छात्र थे, मित्रा इंस्टीट्यूट से छात्रवृत्ति लेकर मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात श्यामा प्रसाद जी ने सन 1917 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया ,सन 1921 में उन्होंने बीए( ऑनर्स )की परीक्षा अंग्रेजी विषय के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी, उस वक्त विश्वविद्यालय स्तर पर अंग्रेजी का ही दबदबा था ,लेकिन देश प्रेम की अटूट भावना ने श्यामा प्रसाद को एम ए. में अंग्रेजी विषय पढ़ने से रोक दिया, अब तक वे भली-भांति समझ चुके थे कि अंग्रेजी भाषा को प्रोत्साहन देने का मतलब है, अपनी स्वयं की भाषा और संस्कृति को भूल जाना, सच्चे हिंदुस्तानी होने का परिचय देते हुए, उन्होंने एम ए अंग्रेजी भाषा के स्थान पर भारतीय भाषा को अपना विषय बनाया, वर्ष 1922 में एम ए की तालीम के समय ही उनका विवाह सुधा देवी से हो गया था, वैवाहिक जीवन के मात्र 12 वर्ष बाद ही उनकी पत्नी का निधन हो गया इसके पश्चात श्यामा प्रसाद ने पुनः विवाह करने से इंकार कर दिया, और अपना शेष जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदुस्तान को पराधीनता ,अन्याय , आसमानता और शोषण से मुक्त कराने और देश के चौमुखी विकास के लिए आजीवन प्रयत्नशील रहे, वे बिना किसी हिचकिचाहट के कहते थे कि हिंदुस्तान की सच्ची आजादी भारतीयों को बिना भारतीय संस्कृति और आदर्शों के मुताबिक जीने का अवसर और प्रोत्साहन देने में है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी विद्यार्थी जीवन में अपनी कक्षा में सदैव कुछ अंकों के साथ होते होते रहे साथी जब वह विश्वविद्यालय स्तर में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तभी उन्होंने आगे की कक्षाओं में तथा बीए की पोस्ट को कॉपी पर डाला था उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति उनके लिए हर विषय को सहज बना देती थी विश्वविद्यालय में भी उनकी ख्याति एक मेधावी छात्र के रूप में फैल गई थी इसी वजह से उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज की पत्रिका का महासचिव बना दिया गया इतनी छोटी उम्र में श्यामा प्रसाद के लिए या बहुत बड़ा सम्मान था सन 1924 में उन्होंने बी एल बी परीक्षा उत्तीर्ण की मां ने डिलीट कर दी की उपाधि भी प्राप्त की 1926 में वह इंग्लैंड में कार्य करने लगे या रहते हुए उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वविद्यालयों के सम्मेलन में कोलकाता विश्वविद्यालय का बखूबी प्रतिनिधित्व किया जिससे उन्हें एक श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में जाना जाने लगा सन उन्नीस सौ 34 में महज 33 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बने इससे पूर्व इतनी कम आयु में कोई भी व्यक्ति इस उच्च पद पर नहीं पहुंच सका था वह भी ब्रिटिश शासन काल में कुलपति बनने से उन्हें शिक्षा के संबंध में अपने मकसद और आदर्श को साकार करने का मौका प्राप्त हुआ व प्रगतिशील शिक्षा योजनाओं के लिए आज भी स्नान किए जाते हैं श्यामाप्रसाद अपनी बुद्धि चातुर्य दूरदर्शिता और कर्तव्यनिष्ठा के कारण यह शिक्षा व्यक्ति के साथ-साथ मारती आदर्श की रक्षा करने वाले व्यक्तित्व के रूप में भी जाने जाते रहे हैं आजादी प्राप्ति से पूर्वी भारत में अंग्रेजी शासन होने के बावजूद भी उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में प्रतिभाशाली ढंग से कार्य करके विधान मंडलों से मैं अपना स्थान बना लिया सन 1929 में उन्होंने बंगाल विभाजन परिषद में कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में कोलकाता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया बाद में वह वीर सावरकर की प्रेरणा से हिंदू महासभा के कार्यवाहक अध्यक्ष बने
भक्त भारत आजाद हुआ तो अगस्त 1947 में गांधी जी ने श्यामा प्रसाद को प्रथम राष्ट्रीय सरकार में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया वह देश में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को भलीभांति समझते थे इसलिए देश के महत्वपूर्ण औद्योगिक और आर्थिक समस्याओं को समझने की उनकी शक्ति पर भरोसा करते हुए उन्हें उद्योग एवं पूर्ति मंत्रालय का प्रभारी मंत्री बनाया गया नेहरू जी के कार्यकाल में औद्योगिक नीति की नीव श्यामा प्रसाद जी ने ही रखी थी उन्होंने देश में तीन विशाल औद्योगिक उपक्रमों की नींव रखी चितरंजन लोकोमोटिव फैक्ट्री सिंदरी उर्वरक निगम और हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट फैक्ट्री बेंगलुरु की स्थापना करके उन्होंने देश के विकास की मजबूत आधार शिला रखी।

प्रसाद जी की अद्भुत संगठन क्षमता की तुरंत भारत में केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के पश्चात डॉक्टर मुखर्जी भारतीय और परंपराओं के संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध हुए उन्होंने अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना की तथा उन्हें जनसंघ का प्रथम अध्यक्ष निर्वाचित किया गया इसी संघ के जरिए से उन्हें भारतीय परंपरा और संस्कृति को पश्चात के प्रकोप से बचाने का प्रयत्न किया वे कहते थे कि भारत का भविष्य भारतीय संस्कृति और मर्यादा की उचित प्रतिष्ठा में है भारत के सच्चे पुत्र और पुत्रियों को इस बात का गर्व होना चाहिए कि उन्हें जो युगीन सभ्यता विरासत में मिली है महान और स्थाई है हमारा यह उत्तर दायित्व है कि हम उसे निश्चित और पतलू मुक्त ना होने दें।

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को स्वतंत्र भारत का पहला शहीद कहा जाता है यह सच्चे देशभक्त के संतान प्राप्ति से पूर्व उन्होंने भारत के विभाजन का कटु शब्दों में विरोध किया था क्योंकि जनता हमें अनेक कठिनाइयों बलिदानों और अथक संघर्ष के पश्चात प्राप्त हुई है इसमें सभी मजहब जाति के व्यक्तियों का योगदान रहा है लेकिन अंग्रेज सत्ता की फूट डालो शासन करो की नीति ने कुछ भारतीयों के जेहन में अलगाव की भावना उत्पन्न कर दी जिसके कारण मुस्लिम भाइयों ने भारत के लिए किए संघर्ष के प्रतिफल के रूप में प्रथम मुसलमान देश की मांग रख दी मुस्लिम लीग पाकिस्तान बनाने पर तुली हुई थी जबकि सभी यू भाई इस पृथक राष्ट्र की कल्पना नहीं थी डॉक्टर सेवा श्यामा प्रसाद ने भी मछली मिली कि इस मांग को अनुचित ठहराते हुए भारत की अखंडता के लिए अथक संघर्ष किया लेकिन मुस्लिम लीग और ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने अंतत आदेश का विभाजन करा ही दिया मात राजनीतिक स्वार्थपरता और धार्मिक उन्माद के कारण कितने ही हिंदू मुस्लिम लोगों को हत्या का शिकार होना पड़ा पाकिस्तान में जो हिंदुओं को भगाने के लिए नियम से निम्न उपाय प्रयोग किया गया यहां भयभीत हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार को जय श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ह्रदय तड़प उठा पाकिस्तान बनने पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कडा संघर्ष किया और निरंतर संघर्ष और अथक परिश्रम से आधा बंगाल पाकिस्तान में जाने से बचा लिया।

डॉक्टर मुखर्जी बाल्यकाल से ही सादा जीवन उच्च विचार की युक्ति पर विश्वास करते थे,स्वास्थ्य शरीर तथा सदा आडंबरहीन स्वभाव के कारण वह बड़ी सहजता से सब के स्नेह पात्र बन जाते थे कुलपति के परिवार में जन्म लेने और हर प्रकार के संसाधन संपन्न होने के बावजूद भी उन्होंने हमेशा अंग्रेजी पहनावे की अपेक्षा धोती कुर्ते को ही वेशभूषा के रूप में महत्त्व दिया ।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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