नेता प्रतिपक्ष डाक्टर गोविन्द सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण
सुभाष त्रिपाठी
भिण्ड(देसराग)। नवनिर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों को प्रमाण पत्र मिलने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए जोड़तोड़ शुरू हो गई है। संभावित प्रत्याशियों ने अपने-अपने स्तर से सदस्यों को टटोलना शुरू कर दिया है। वहीं पार्टी का सिंबल पाने के लिए घमासान मचा हुआ है। सबसे ज्यादा मारामारी भाजपा में है, क्योंकि दावे के मुताविक सबसे ज्यादा 12 सदस्य उसके ही जीतकर आए हैं। बताया तो यहां तक जा रहा है कि एक सदस्य की वैल्यू 30 लाख तक पहुुंच गई है। चुनाव नजदीक आने तक और भी इन्क्रीमेंट की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है।
जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव 29 जुलाई को होना है। अध्यक्ष पद के लिए अभी तक दो नाम सामने आ रहे हैं। दोनों का ही नाता सत्ताधारी भाजपा से है। इनमें पहला नाम मिथलेश कुशवाह का है। मिथलेश दो बार भाजपा के विधायक रहे नरेेंद्रसिंह कुशवाह की पत्नी है और पूर्व में जिला पंचायत अध्यक्ष रह भी चुकी है। इस बार उनका पूर्व का वार्ड आरक्षित हो जाने के बाद उन्होंने अटेर के जवासा से चुनाव लड़ा था और सबसे ज्यादा मतों से जीतने का सेहरा उन्हीं के सिर बंधा है। सियासत में दखल रखने वालों का कहना है कि इस बार मिथलेश की राह उतनी आसान नहीं है। विधानसभा चुनाव में भाजपा से बगावत कर चुनाव लडऩे के कारण उनसे प्रदेश नेतृत्व खफा बताया जा रहा है।
हाल ही में उनके धुर विरोधी विधायक संजीव सिंह कुशवाह के भाजपा में आ जाने से उनकी मुश्किले और भी बढ़ गई है। आरोप है कि मिथलेश का अटेर मेें कोई प्रभाव नहीं है। उनकी जीत के पीछे पूर्व कांग्रेस विधायक हेमंत कटारे का हाथ बताया जा रहा है। इसीलिए सहकरिता मंत्री अरविंद भदौरिया और विधायक संजीव सिंह मिथलेश के खिलाफ पूरी जोरदारी से लगे हुए है। पिछले कुछ सालों से जिस प्रकार पूर्व विधायक और नेता प्रतिपक्ष डाक्टर गोविन्द सिंह की नजदीकियां बढ़ी है। उससे भी भाजपा का एक खेमा खफा है। इसी बीच अंदरखाने खबर यह भी है कि यदि मिथलेश के नाम पर भाजपा और निर्दलीय एकमत होते हैं तो कांग्रेस से भी उन्हे बूस्टर डोज मिल सकता है।
मिथलेश के बाद कामना-सुनील भदौरिया के नाम पर चर्चा हो रही है। कामना जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष केपी सिंह भदौरिया की पुत्रवधू है। केपी बड़े ठेकेदार हैं और पैसा खर्च करने में भी समर्थ है। भाजपा का नरेंद्र विरोधी खेमा कामना के लिए लाबिंग कर रहा है। दावा किया जा रहा है कि 80 फीसदी तक भाजपा से कामना का ही नाम आएगा, क्योंकि कामना युवा है और उनके पति सुनील मेहगांव के जनपद अध्यक्ष भी रहे चुके है। ससुर केपी सिंह भी जिला पंचायत के सदस्य रहे। भिण्ड में जिला पंचायत की 21 सींटे हैं। इनमें से 12 पर भाजपा समर्थित जीते हैं तो 4 पर कांग्रेस ने विजय पताका फहराई है। 5 सदस्य निर्दलीय के रूप में जीतकर आए है। निर्दलीयों की भूमिका अहम मानी जा रही है।
संभावना ये भी
मिथलेश का बागी के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं कांग्रेस?
राजनीति में ऊंट किस करवट बैठता है, पूर्व से भविष्य वाणी करना संभव नहीं हैं। संभावना ये भी है कि यदि भाजपा ने कामना भदौरिया को मैदान में उतार दिया और मिथलेश भाजपाई खेमें से कम से कम 4 सदस्यों को तोडक़र लाती हैं, तो कांग्रेस उनपर दांव खेल सकती है। इससे कांग्रेस पर 9 सदस्य हो जाएंगे। दो या तीन निर्दलीयों को अपने पाले में कर कांग्रेस ये जंग आसानी से जीत सकती है। इससे नेता प्रतिपक्ष डाक्टर गोविन्द सिंह का प्रदेश की राजनीति में दबदबा और भी बढ़ सकता है।
15 माह बाद विधानसभा चुनाव होने है। इसलिए कांग्रेस भी ये दिखाने की कोशिश में पीछे नहीं रहेगी कि अब भाजपा का खेल खत्म हो रहा है। लेकिन कांग्रेस के लिए भी यह कवायद इतनी आसान नहीं है, क्योंकि पूर्व विधायक हेमंत कटारे और नेता प्रतिपक्ष डाक्टर गोविन्द सिंह के बीच अदावत किसी से छिपी नहीं है। अभी तो ये आंकलन भर है। तस्वीर एक सप्ताह के भीतर साफ हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि भिण्ड जिला पंचायत अध्यक्ष की आसंदी पर बैठने वाले अधिकांश अध्यक्ष मध्य प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष डाक्टर गोविन्द सिंह के सहयोग से ही आसंदी हासिल करने में कामयाब हुए थे। इसलिए इस चुनाव में भी यही अनुमान है कि बिना डाक्टर गोविन्द सिंह की भूमिका के अध्यक्ष का चुनाव संभव नहीं दिख रहा है। इधर नेता प्रतिपक्ष डाक्टर गोविन्द सिंह कहते हैं कि हम खरीद-फरोख्त में विश्वास नहीं रखते, जबकि भाजपा ऐन-केन-प्रकारेण जिला पंचायत अध्यक्ष की आसंदी हासिल करने के लिए जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्यों की बोली लगा रही है। कांग्रेस “देखो और इंतजार करो” की मुद्रा में है। हम निर्दलीय सदस्यों से बात करके आगे की रणनीति पर विचार करेंगे।