ग्वालियर/भिंड। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पूरी उम्मीद है कि साल 2018 की तरह 2023 में भी कांग्रेस की सत्ता में वापसी की राह ग्वालियर-चम्बल के मतदाता ही आसान बनाएंगे। शायद यही वजह है कि वह न केवल पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गए हैं, बल्कि उनका फोकस ग्वालियर-चम्बल की सियासत में होने वाली हर हरकत पर है। अलबत्ता ग्वालियर-चम्बल अंचल के कांग्रेस नेताओं के बीच चल रही गुटबाजी को समाप्त कर एकता का संदेश देने आ रहे हैं। वह कमलनाथ बुधवार को भिण्ड शहर में आयोजित बड़ी रैली को सम्बोधित करेंगे। हालांकि इस रैली का आयोजन जिला कांग्रेस के बैनर तले किया जा रहा है, लेकिन जिले की सियासत में सक्रिय दो पूर्व मंत्री डाक्टर गोविन्द सिंह और चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी कमलनाथ के समक्ष जिले की सियासत में अपनी-अपनी ताकत का प्रदर्शन करने वाले हैं।
एकता का संदेश देने आएंगे कमलनाथ
ग्वालियर-चम्बल अंचल में कांग्रेस एक बार फिर एकता का राग अलाप रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भिंड शहर में पार्टी की एकता का जलसा करने आ रहे हैं। भिंड में कांग्रेसियों की एकता कितना रंग लाएगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन पार्टी की गुटबाजी ने अभी से ही इस एकता को दरकाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। कहने को तो यह पूरा शो दिग्गज कांग्रेसी नेता डॉक्टर गोविंद सिंह और चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के इर्द-गिर्द घूम रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि कमलनाथ को एकता का संदेश भिंड शहर में देना है लिहाजा कांग्रेस के अन्य बड़े क्षत्रप यहां अपनी ताकत दिखाने में इसलिए हिचक रहे हैं कि कमलनाथ की आमद भिण्ड शहर में हो रही है और यह उन क्षत्रपों का सियासी अखाड़ा नहीं है। हालांकि पूर्व मंत्री डाक्टर गोविन्द अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी यह कोशिश कितनी कामयाब होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
डॉक्टर और चौधरी के जिम्मे मीडिया मैनेजमेंट
भिंड शहर चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी का क्षेत्र है इसलिए वह अपनी ताकत लगा रहे हैं। कहा यह जा रहा है कि इस आयोजन पर खर्च होने वाली राशि के बड़े हिस्से पर कुछ बड़े नेताओं ने कुंडली मार ली है। बहरहाल कांग्रेस नेता हेमंत कटारे ने इस पूरे शो से अपनी दूरी बना ली है और वह अटेर में ही सिमट कर रह गए हैं। सभी जानते हैं कि डॉक्टर गोविंद सिंह कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के खेमे के हैं और चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी कमलनाथ से नज़दीकियां बढ़ा चुके हैं। कांग्रेस के जिला अध्यक्ष मानसिंह कुशवाह केवल नाम के जिला अध्यक्ष बन कर रह गए हैं। अर्थात हर बात पर उनकी लचारी समझ आ रही है। अब यह भौतिकता के धरातल पर कितना सच है, यह तो वही जानें, लेकिन जो और जैसा वह दिखा और बता रहे हैं, यदि वही सच है, तो उनके अध्यक्ष की आसंदी पर रहने और न रहने का कोई मतलब नहीं है। उन्हें इन दोनों ही गुटों ने अलग-थलग कर दिया है, क्योंकि उनकी नियुक्ति दिल्ली से हुई है। भिंड में पार्टी की एकता दिखे, इसके लिए कुछ नेताओं को मीडिया मैनेजमेंट के काम में भी लगाया गया है। बहरहाल यह देखना बाकी है कि पार्टी में मचे घमासान के बीच एकता कितनी रंग लाती है।
क्यों अहम है ग्वालियर-चंबल अंचल
बता दें कि मध्य प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर चंबल अंचल की बेहद अहमियत है। इस अंचल में ग्वालियर और चंबल संभाग में कुल 8 जिले हैं, जिनमें विधानसभा की 34 सीटें आती हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां से भाजपा ने 20 सीटें जीती थीं। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दबदबा रहा और कांग्रेस ने यहां 26 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं भाजपा को 2013 के मुकाबले 13 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था और वह 2018 में 7 सीटों पर सिमट गई थी।
सिंधिया फैक्टर अहम
ग्वालियर-चंबल अंचल केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबदबे वाला इलाका माना जाता है। साल 2020 में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में 16 सीटें ग्वालियर-चंबल अंचल की ही थीं। ऐसे में उपचुनाव में सिंधिया की साख भी दांव पर थी। उपचुनाव में भाजपा ने जीत हासिल कर एक बार फिर से ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस को पटखनी दी थी और सिंधिया ने अपनी ताकत दिखाई थी। यही वजह है कि 2023 के चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल के नतीजों पर सभी की निगाहें टिकी होंगी।
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