लखनऊ (देसराग)। पुरानी पेंशन योजना उत्तर प्रदेश में हो रहे चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली करने की घोषणा कर जो दांव चला है, बीजेपी उसकी काट नजर नहीं आ रही है।
इस बीच राजस्थान की गहलोत सरकार ने भी पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की बात कही है। फिलहाल बात यूपी चुनाव की है तो बता दें कि सूबे में 28 लाख सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स हैं, अगर अखिलेश यादव इन्हें प्रभावित कर लेते हैं तो समाजवादी गठबंधन के लिए यह मुद्दा गेमचेंजर साबित हो सकता है। दरअसल यह मुद्दा सीधे तौर पर कर्मचारी, पेंशनर्स और उनके परिवार से जुड़ा हुआ है। पुरानी पेंशन की बहाली के लिए राज्य कर्मचारियों और शिक्षकों ने कई बार आंदोलन भी किए लेकिन सरकार की तरफ से आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला।
साल 2004 मैं केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने घोषणा की थी कि 2005 के बाद की नियुक्तियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया था और उसकी जगह नई पेंशन योजना को लागू किया। हालांकि इसे राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं किया गया लेकिन बाद में कई राज्यों ने इसे लागू कर दिया। जानकारों के मुताबिक नई पेंशन योजना में कई खामियां हैं मसलन नई पेंशन योजना यानी नेशनल पेंशन सिस्टम( एनपीएस) शेयर मार्केट पर आधारित है और इसमें जीपीएफ की सुविधा भी नहीं है। एनपीएस राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं थी फिर भी उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी इसे राज्य में लागू कर दिया था। पुरानी पेंशन योजना में नौकरी के दौरान किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिवार को पेंशन दिए जाने का प्रावधान भी था। एनपीएस में कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिवार को पेंशन दिए जाने को लेकर बहुत कुछ साफ नहीं है। इस पैसे को जप्त भी किया जा सकता है।
20 जुलाई 2019 को विधान परिषद में एक लिखित जवाब में योगी सरकार के वित्त मंत्री ने कहा था कि पुरानी पेंशन को लागू करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। ऐसे में अखिलेश यादव का यह चुनावी मुद्दा सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स तथा उनके परिवारों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा बनता जा रहा है।
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