नज़रिया
सोमेश्वर सिंह
आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के सेंट्रल विस्टा के पास स्थित राजपथ में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदम कद प्रतिमा का अनावरण कर रहे थे। कार्यक्रम में कुछ कलाकार दुंदुभी, ढोल, मजीरा, मृदंग वाद्य यंत्र लेकर वीर रस से ओतप्रोत युद्ध घोष की धुन बजा रहे थे। राजपथ से गुलामी की बू आ रही थी इसीलिए नाम बदलकर उसे कर्तव्य पथ रख दिया गया है। पुराने संसद भवन का भी यही हाल था। लिहाजा नया संसद भवन निर्माणाधीन है। पुराने संसद भवन के सामने महात्मा गांधी की प्रतिमा थी। और अब सेंट्रल विस्टा के नए संसद भवन के सामने सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा होगी। महात्मा गांधी के समानांतर तथाकथित वीर अर्थात सावरकर को खड़ा करने का अनुकूल समय नहीं आ पाया है। इसीलिए आजादी के अमृत महोत्सव में महात्मा गांधी के समानांतर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को खड़ा किया जा रहा है।
दिल्ली के राजपथ में इंडिया गेट के ठीक पीछे एक छतरी है जो सूनी थी। किसी जमाने में अंग्रेजों ने 1939 में इस छतरी के नीचे ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम की प्रतिमा स्थापित की थी। जिसे हिंदुस्तान की आजादी के बाद हटा दिया गया था। छतरी सूनी थी। पिछले 70 साल में कांग्रेस ने उस छतरी में किसी की प्रतिमा स्थापित करने का दुस्साहस नहीं किया। भारत के एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करते हुए अपने कर्तव्य पथ पर तीन-तीन गांधी शहीद हो गए। दुनिया के इतिहास में देश के संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए समर्पित, बलिदानी अन्य कोई दूसरा राजनीतिक परिवार नहीं मिलेगा। हिंदुस्तान की आजादी में जिनका कोई योगदान नहीं है। जो अंग्रेजों की तरफदारी करते थे। आज वही सबसे बड़े राष्ट्रभक्त बन गए हैं। सुभाष चंद्र बोस की आड़ में फिरका परस्त ताकतें अपने कलंकित इतिहास को नहीं मिटा सकती।
सेंट्रल विस्टा में आज जो कुछ हो रहा था उसके उलट ठीक 24 घंटा पहले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का शुभारंभ कर रहे थे। वह भी दक्षिण भारत के श्रीपेरंबदूर से जो भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का शहादत स्थल है। यात्रा प्रारंभ करने के पहले राहुल गांधी वहां गए। राजीव जी की याद में आयोजित प्रार्थना सभा में स्थानीय भाषा के किसी गीत की धुन बज रही थी। उसी क्रम में आगे राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत “ऐ मेरे वतन के लोगों जरा याद करो कुर्बानी” की धुन सुनाई दी। और अंत में “वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाने रे”। दिल्ली और श्रीपेरंबदूर के दोनों कार्यक्रम में दो भारत दिखाई दे रहे थे। दिल्ली में युद्ध का दृश्य था तो श्रीपेरंबदूर में बुद्ध का।
किसी जमाने में कम्युनिस्ट पार्टियां नारा लगाया करती थीं- “कौन बनाता हिंदुस्तान, भारत का मजदूर किसान” दूसरा नारा था-” एक धक्का और दो इजारेदारी तोड़ दो”। पता नहीं यह नारा कहां गुम हो गया था। जिसकी तरफदारी अब राहुल गांधी कर रहे हैं। वे बड़े हिम्मत के साथ कहते हैं- आज दो भारत हैं एक अमीरों का दूसरा गरीबों का। यद्यपि यह कांग्रेस का चरित्र नहीं है। बावजूद इसके भी राहुल गांधी बड़ी बेबाकी से के साथ मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष की बात करते हैं। कांग्रेस आज इतिहास के निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। भारत का भविष्य और संविधान की रक्षा कोई एक अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता। जब तक इसमें सभी भारतवासियों की साझेदारी ना हो। शायद इसीलिए राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा का ऐलान किया है।
आज भारत की संवैधानिक संस्थाएं खतरे में हैं। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। विदेशी कर्ज बढ़ गया है। आत्ममुग्ध मोदी सरकार उत्सवधर्मी हो गई है। सार्वजनिक उपक्रम को निजी हाथों में बेचा जा रहा है। विपक्षी दल की आवाज को संसद से सड़क तक दबाया जा रहा है। ईडी, सीबीआई की कार्रवाई बदले की भावना से की जा रही है। गरीब गरीब और अमीर अमीर होता जा रहा है।
ऐसे में मुझे धूमिल की एक कविता याद आ रही है-
“एक आदमी रोटी बेलता है,
एक आदमी रोटी खाता है,
एक तीसरा आदमी भी है,
जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है,
वह सिर्फ रोटी से खेलता है,
मैं पूछता हूं यह तीसरा आदमी कौन है,
मेरे देश की संसद मौन है”
संसद मौन कर दी गई है या अब मार दी गई।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)