नज़रिया
सोमेश्वर सिंह
हमारे कुछ मिसिर मित्र निचाट मोदीमयी है। पुराने मित्र हैं। इन दिनों उनसे फेसबुकिया संवाद होता रहता है। घोर राष्ट्रवादी हैं। उनका बस चले तो रात भर में पीट पाट कर सुबह होते ही हिंदूराष्ट्र घोषित कर दे। राष्ट्रवादी होने के लिए मुस्लिम विरोधी होना जरूरी है। कल रीवा वाले मिसिर जी ने मुझसे व्हाट्सएप पर एक सवाल पूछा। अकबर का बाप हुमायूं 1539 ई में चौसा का युद्ध शेरशाह सूरी से हार कर भाग गया। वह अपनी बीवी को अमरकोट राजा वीरसाल के पास छोड़ कर 15 साल तक भटकता रहा। जब वह अपनी बीवी के साथ था ही नहीं तो 1542 ई में अकबर कैसे पैदा हो गया। आप बताइए कि आखिर अकबर का बाप कौन था। उसे हम किसका बेटा माने।
सोशल मीडिया में अक्सर इस तरह के नफरती सवाल पूछे जा रहे हैं। मिसिर जी के चुतिआई सवाल का भला मैं क्या जवाब देता। मैंने उन्हीं से प्रतिपश्न पूछ लिया कि हिंदू मैथा मैथोलॉजी के अनुसार नियोग पद्धति से यदि पुत्र पैदा किया जा सकता है। तो क्या इसका हक मुसलमानों को नहीं है अथवा नियोग पद्धति का हिंदुओं ने पेटेंट करा लिया है। फिर क्या था हमारे मिसिर मित्र भड़क गए। भला बुरा कहने लगे ।उनसे अक्सर इस तरह का वाद विवाद होता रहता है। विचारों से वे सिद्धांत: भले असहिष्णु हो किंतु निजी जिंदगी में मित्रता के मामले में सहिष्णु हैं।
हमारे सीधी में भी दूसरे भाजपाई मिसिर मित्र हैं। वे तीसरे मिसिर कांग्रेस प्रवक्ता के के मिश्रा से खुन्नस खाए हैं। उनका आरोप है कि कांग्रेसी मिसिर ने बाम्हनों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उन्होंने लोकोक्ति “हाय अल्ला पांडे के ऊपर पांडे” के बहाने कांग्रेसी मिसिर के ब्राम्हण कुल में पैदा होने पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। बम्हनौती का यह तिलिस्म अपने पल्ले नहीं पड़ता। कभी सीधी विधायक केदार भैया के संगत में रहने के कारण तीन,तेरह,सवालक्खी तथा डीएमटी सुना था। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो बघेलखंड के राजनीति में डीएमटी का ही बोलबाला है। मैंने सीधी वाले मिसिर जी की पोस्ट पर टिप्पणी की किसी जात, समुदाय को टारगेट करके आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। चाहे वह किसी दल का हों।
इस प्रसंग में मुझे भी एक लोकोक्ति का स्मरण हो गया -एक पुजारी और मौलवी गहरे मित्र थे। दोनों में गहरी बनती और छनती थी। दोनों एक दूसरे के धर्म का आदर करते। परस्पर त्योहारों में शामिल होते, ईद हो या दिवाली। इत्तेफाक से पुजारी जी मिसिर बाम्हन थे। उन्होंने एक दिन मौलवी मित्र से कहा यार मुझे भी जुमे की नमाज में ले चलो। मौलवी जी मान गए पुजारी मित्र को नमाज का तरीका बताया। नमाजी की तरह तहमद टोपी पहनाई। अंत में समझाया कि आगे वाला नमाजी जैसा करेगा वैसा ही करना। फिर क्या था पुजारी जी जुमां की नमाज अदा करने मस्जिद पहुंच गए।
नमाज शुरू हुई। पुजारी जी एक्शन मोड में थे। आगे वाले नमाजी का अनुसरण करके उठ बैठ रहे थे। पुजारी जी कछनी छाप परदनी वाले थे। कभी तहमत पहनी नहीं थी। नमाज अदा करते हुए कमर से नीचे झुके। जमीन पर घुटना टेका। दोनों हाथ पीछे किया। माथे को जमीन पर रखा कि तभी उनकी तहमत खिसककर कमर के ऊपर पहुंच गई। यद्यपि वे लंगोट में थे। लेकिन चूतड़ दिखाई देने लगे। पीछे वाले नमाजी ने खिसिया का पुजारी जी के चूतड़ में दे लात मारी। पुजारी मिसिर जी ने सोचा यह भी नमाज का हिस्सा है। और उन्होंने कतार में सामने वाले नमाजी के चूतड़ में लात जड़ दिया। आगे वाले ने पूछा अरे मिंया यह क्या कर रहे हो। पुजारी जी ने कहा नमाज पीछे से आई थी आगे बढ़ा दिया है।
सभी मिसिर मित्रों को मेरी सलाह है की दलीय अथवा गुटीय आधार पर मिसिरों के बीच भेदभाव ना करें। हिंदू राष्ट्र बनाने का एक बड़ा लक्ष्य लेकर चले हैं। भारतीय मुसलमानों को कन्वर्टेट हिंदू बता कर रहे हैं। कम से कम मिसिरों के साथ मुसलमानों जैसा व्यवहार न करें। इतिहास को तोड़ें मरोड़ें नहीं। वैसे भी आपके व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को मुसलमान साबित किया जा रहा है। राहुल गांधी हों या वरुण गांधी दोनों उन्हीं के वंशज हैं। यदि राहुल गांधी को वंश के आधार पर राष्ट्रदोही बता रहे हैं तो फिर उसी कुल के वरुण गांधी कैसे राष्ट्रवादी हो गए।