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Wednesday, Sep 27, 2023
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राजनीति

दिग्गी गुट के समानांतर अपनी जमीन तलाश गए कमलनाथ

ग्वालियर(देसराग)। ग्वालियर-चम्बल अंचल में कांग्रेस की सियासत में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद जो खालीपन आया, उसकी भरपाई करने के लिए मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी जमीन तलाशने में जुट गए हैं। इसके लिए उन्होंने इस इलाके में पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को अपना झंडावदार बनाया है। इसके संकेत बीते 23 फरवरी को भिण्ड जिला मुख्यालय पर आहूत जन आक्रोश रैली के जरिए उन्होंने दे दिए हैं। कहने को तो इस रैली के अगुआ की भूमिका में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खास सिपहसलार पूर्व मंत्री डाक्टर गोविन्द सिंह रहे, लेकिन कमलनाथ ने जिस तरह चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को अहमियत दी, उसने ग्वालियर-चम्बल अंचल में कांग्रेस की सियासत में कमलनाथ की कवायद के फलित होने के संकेत तो दे ही दिए हैं।
दरअसल ग्वालियर-चम्बल अंचल में कांग्रेस की सियासत सिधिया राजवंश के अलावा यदि किसी अन्य क्षत्रप के इर्दगिर्द मंडराती नजर आई, तो वह हैं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, इसकी वजह उनकी सियासत का आरंभ इसी अंचल से होना और सिधिया राजवंश की सरपरस्ती में फलना-फूलना। इसलिए यहां कांग्रेस सिंधिया महल और राघौगढ़ रियासत के बीच बंटती चली गई। अब जबकि सिंधिया राजवंश से कांग्रेस का सालों-साल पुराना रिश्ता टूट चुका है। तब इस अंचल में कांग्रेस अपना बजूद तलाशने की कवायद में जुटी हुई है। हालांकि दिग्विजय सिंह के जरिए कांग्रेस ग्वालियर-चम्बल अंचल में अभी भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। लेकिन जो हालात साल 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले रहे वह अब दिखाई नहीं पड़ते है। यही वजह है कि साल 2023 के सियासत के फाइनल मैच से पहले कांग्रेस मुखिया कमलनाथ इस अंचल में दिग्विजय कांग्रेस से इतर अपनी कमलनाथ कांग्रेस का वजूद खड़ा करने की कवायद में जुटे हैं, फिलवक्त उन्होंने भिण्ड मुख्यालय पर जनआक्रोष रैली के जरिए इस अंचल के ब्राम्हण नेता पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के जरिए इस बड़े वर्ग को कांग्रेस के नजदीक लाने की कामयाब कोशिश की है।
प्रदेश कांग्रेस मुखिया कमलनाथ ने उन पर अपना विश्वास दिखाया है और दिग्विजय सिंह गुट को यह संकेत भी दे दिया है कि आने वाले समय में ग्वालियर-चम्बल अंचल की सियासत कांग्रेस के किसी एक क्षत्रप की जागीर बनकर रहने वाली नहीं है। यही वजह है कि कमलनाथ ने भिण्ड की रैली की पूरी कमान तो बड़ी ही सियासी चतुराई से दिग्विजय सिंह के खास पूर्व मंत्री डाक्टर गोविन्द सिंह के हाथों में सौंप दी, जिससे वह इस अंचल में कांग्रेस की एकता का संदेश दे सकें, लेकिन अपने इस सियासी तीर के जरिए उन्होंने चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को नये शक्ति केन्द्र के रूप में खडा कर दिया है। यहां यह तथ्य बताना बेहद जरुरी है कि चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी एक समय में कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार थे। समय की बलिहारी कि कांग्रेस के अन्दर पनप रही जातिगत सियासत ने उन्हें साल 2013 में कांग्रेस को अलविदा कहने के लिए मजबूर किया और भाजपा में जाने के बाद हुए धोखे से द्रवित होकर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के जरिए कांग्रेस में वापसी महज इसलिए की थी कि सिंधिया की सरपरस्ती में कांग्रेस में उनका वजूद सलामत रहेगा, परन्तु उनका दुर्भाग्य उनसे दो कदम आगे चल रहा था। सिंधिया लोकसभा का चुनाव हार गए और कांग्रेस के अन्दर सिंधिया के खिलाफ कमलनाथ-दिग्विजय गुट की लामबन्दी ने सिंधिया को भी कांग्रेस से अलविदा कहलवा दिया। सिंधिया के कांग्रेसस से जाने के बाद चौधरी राकेश सिंह की कांग्रेस में वापसी पर संकट के बादल मंडराते दिखाई देने लगे। 28 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव की बेला में चौधरी राकेश सिंह की कांग्रेस में सदस्यता का माला तूल पकड़ गया। हालात यह बने कि दिग्विजय सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने खुलकर चौधरी राकेश सिंह की मुखालफत की और अंततः उस समय कमलनाथ चाहकर भी चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को मेंहगांव विधानसभा सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं बना पाए। कांग्रेस के अन्दर ही अन्दर चल रही इस अदावत का पटाक्षेप खुद कमलनाथ ने चौधरी राकेश सिंह की सदस्यता का मामला अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मुखिया सोनिया गांधी के जरिए सुलटवा कर कर दिया। अब चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी कमलनाथ के उन्हीं अहसानों का बदला चुकाने के लिए कांग्रेस के अन्दर उनका झण्डा बुलन्द कर रहे हैं। अर्थात चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के जरिए कमलनाथ इस अंचल में अपने समर्थकों की बड़ी फौज तैयार करने की कवायद में जुट गए है। उनकी यह कवायद कितनी कामयाब हो पाएगी यह तो भविष्य ही बताएगा।

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