ग्वालियर(देसराग)। मध्य प्रदेश सरकार ने ग्वालियर शहर में जमीन के एक हिस्से पर लंबी लड़ाई लड़ने के बाद अपनी पार्टी के ड्रीम प्रोजेक्ट रोपवे को बनाने का बड़ी धूमधाम से निर्माण कार्य शुरू कराया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तक सब शिलान्यास करने आए थे। तब भाषणों में तंज भी कसा था कि कुछ लोग ग्वालियर के विकास कार्य में सालों से बाधा बने रहे, लेकिन अब यह बाधा दूर हो गई हैः लेकिन अब प्रदेश में और केंद्र में दोनों जगह भाजपा की सरकार है। रोपवे का काम तो अटक ही गया। अब किले पर स्थित वह करोड़ों की कीमत वाली जमीन को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की देखरेख वाले सिंधिया स्कूल को ही देने की तैयारी है। भाजपा में इसको लेकर कसमसाहट है, लेकिन बोल नहीं पा रहे जबकि कांग्रेस मजे ले रही है।
यह है पूरी कहानी
सिंधिया परिवार की सरपरस्ती में चलने वाले सिंधिया बॉयज स्कूल, फोर्ट को संचालित करने वाली संस्था द सिंधिया एजुकेशन सोसायटी ग्वालियर ने राजस्व विभाग से किले पर स्थित 16.53 बीघा राजस्व भूमि अर्थात लगभग 3 लाख 72 हजार 108 वर्गफीट जगह का और आवंटन मांगा है। करोड़ों रुपए मूल्य की यह बेशकीमती भूमि ग्वालियर फोर्ट पर स्थित है। सोसायटी ने ग्वालियर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह के यहां आवेदन लगाया है। जिसके अनुसार आऊखाना कलां मौजे के सर्वे क्रमांक 772/2 2.100 हेक्टेयर और आऊखाना खुर्द मौजे के सर्वे नम्बर 99 में 1.357 हेक्टेयर सोसायटी ने अपने लिए डिमांड की है। नजूल अधिकारी ने यह आवेदन आगे बढ़ा दिया है और 31 जनवरी तक दावे आपत्ति मांगे है। इसी तरह सर्वे नम्बर 777/2 में सोसायटी ने किले पर स्थित 17.577 हेक्टेयर में से 2.100 हेक्टेयर जमीन का आवंटन देने की मांग की है। राजस्व दस्तावेज बताते हैं कि सोसायटी पहले से ही राजस्व की 295 बीघा (59.015 हेक्टेयर) से भी ज्यादा जमीन पर काबिज है। यह जमीन सर्वे क्रमांक 9/2, 345/2, 346/2, 350/4 क और ख, 345/3, 346/2, 350/2, 777/1 और 2 की कुल 59.015 हेक्टेयर जमीन है।
इस जमीन का आवंटन कमलनाथ सरकार ने 2019 किया था। वह भी महज 100 रुपए भू भाटक यानी डायवर्सन शुल्क सालाना देने की शर्त पर किया गया था। तब बीजेपी ने इसका जमकर विरोध किया था पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा और पूर्व मंत्री ने तो सिंधिया को भू-माफिया ही बता दिया था, लेकिन अब उन्हीं की सरकार बाकी की भूमि लीज पर देने जा रही है। इस मामले पर भाजपा भले ही खुलकर नहीं बोल पा रही, लेकिन उसमे अंदर ही अंदर ज्वालामुखी का लावा खदबदा रहा है। इसकी वजह है पार्टी के ड्रीम प्रोजेक्ट रोपवे का न बन पाना।
दरअसल सिंधिया संस्थान ने जो जमीन लीज पर मांगी है, भाजपा के ड्रीम प्रोजेक्ट रोपवे के एक स्टैंड के लिए आरक्षित और आवंटित भूमि भी शामिल है। सर्वे क्रमांक 777/ 2-3 की चार हजार हेक्टेयर भूमि इसके लिए आरक्षित थी। लेकिन अब यहां से स्टैंड का प्रपोजल ही हटा दिया गया। इससे भाजपा के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक निराश और हताश हैं।
सिंधिया परिवार को नापसंद
जनता पार्टी के समय और अब भाजपा के नेता रोपवे बनाने का सपना देख रहे हैं। योजना के मुताबिक इसका एक स्टैंड फूलबाग पर तो दूसरा ऐतिहासिक किले पर बनना प्रस्तावित था। किले वाला सिरा जो सिंधिया स्कूल के प्राचार्य के बंगले के पीछे खुलना था, सिंधिया परिवार को नापसंद था। भाजपा नेता बीते पचास साल से सिंधिया परिवार यानि पहले माधव राव सिंधिया और फिर उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया पर इसके मार्ग में बाधा डालने का आरोप लगाते रहे। किला पर एएसआई की इजाजत मिलना जरूरी है और केंद्र की कांग्रेस सरकार में सिंधिया परिवार के ताकतवर होने से वह हासिल नही हो पाती थी, लेकिन एक वक्त ऐसा आया कि नगर निगम, प्रदेश और केंद्र में तीनो जगह भाजपा की ही सरकारें बनीं तो तत्कालीन महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने काफी प्रयास कर शिवराज और तोमर की मदद लेकर रोपवे की सारी अधिस्वीकृतियां करवा ली। इसके शिलान्यास का बड़ा ही भव्य कार्यक्रम हुआ। इसे भाजपा के नेता से लेकर कार्यकर्ताओं ने एक तरह से सिंधिया के ऊपर विजय के रूप में प्रचारित किया और संमारोह में सभी ने अपना भाषण इसी पर केंद्रित किया।
2020 में कमलनाथ की सरकार गिरते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होते ही रोपवे परियोजना का पहिया उल्टा घूमने लगा। हालांकि इस पर निर्माण कार्य शुरू भी हो गया था लेकिन रातोंरात इसकी सारी एनओसी रद्द कर दी गईं और कहा गया कि लोवर और अपर दोनों टर्मिनल के लिए पहले दूसरी जगह ढूंढेंगे तब फिर काम शुरू होगा। इस फैसले के बाद से ही भाजपा के नेता और कार्यकर्ताओं के बीच शीतयुद्ध शुरू हुआ जो अब इस जमीन को लीज पर मांगने के साथ और गहरा गया है।
इस मामले को लेकर भाजपा में हालांकि अंदरखाने जबरदस्त रिएक्शन है, लेकिन खुलकर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। सांसद विवेक नारायण शेजवलकर कहते है कि सिंधिया एजुकेशन ट्रस्ट के पास तो पहले से ही काफी जमीन है और फिर रोपवे में तो बहुत ही कम भूमि की फोर्ट पर चाहिए थी। उनका कहना है कि उन्हें पता चला है कि अपर टर्मिनल बदलने के लिए कोई जगह चयनित की है। अभी तक कहीं कोई काम शुरू नहीं हुआ है। शेजवलकर ने कहा कि वहां उनके पास पहले से ही 60 हजार हेक्टेयर भूमि है। इसके लिए तो केवल 3000 फुट जगह चाहिए थी। इतनी से उनको कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। हालांकि मुझे पता नहीं है कि कि वहां किसने जमीन लीज पर मांगी है या नहीं।
भूमि आवंटन कार्रवाई का यह मामला उजागर होने के बाद प्रशासन भी हड़बड़ी में आ गया। कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने इस मामले पर गोलमोल जबाव दिया। उन्होंने स्वीकार किया कि जमीन आवंटन के लिए एक आवेदन प्राप्त हुआ है। जब भी कोई सामाजिक, शैक्षणिक संस्था इसके लिए आवेदन देती है तो उसकी एक प्रक्रिया है। उसे दर्ज कर इश्तिहार जारी करते हैं। परीक्षण करते हैं और फ़िर उसी प्रोसेस में जमीन आवंटन के मामले निपटाए जाते हैं। जब उनसे पूछा कि किसके नाम से आवेदन आया है, तो वे नाम लेने से भी बचते रहे। उन्होंने कहा कि अभी हमने एग्जेक्ट परीक्षण नहीं किया है इसलिए नहीं बता सकता।
कांग्रेस ने भी इसकी आड़ में भाजपा पर गहरा तंज कसते हुए कहा कि, सच मे सपनों का जागते हुए मरना बहुत बुरा लगता है। उन्होंने कहा जहां तक रोपवे का सवाल है तो रोपवे ना बनने के लिए सिर्फ और सिर्फ केंद्रीय मंत्री सिंधिया जिम्मेदार हैं। क्योंकि वह इस रोप वे अपने सिंधिया स्कूल के पास नहीं बनना देखना चाहते थे। उनका सपना पूरा हो रहा हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता इसी जमीन को लेकर तो सिंधिया को भूमाफिया बोलते थे। अब क्यों इस मामले में मुंह में गुड़ डाले बैठे हैं। असल सच्चाई तो यह है कि जो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने साल 2018 में भाजपा के साथ जो डील की थी यह उसी डील का हिस्सा है।