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Tuesday, Jun 6, 2023
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राज्य

क्या नरोत्तम देंगे शिवराज को चुनौती?

डॉ. प्रमोद कुमार
मध्यप्रदेश में नरोत्तम मिश्रा हर समय सुर्खियों में रहने वाले नेता हैं। विषय कोई भी हो, उस पर बयान देना मानो उनका जैसे जन्म सिद्ध अधिकार है। चाहे बुलडोजर का मामला हो, हिंदू मुस्लिम का मामला हो, फिल्मी हीरो हीरोइन पर बोलना हो। नरोत्तम मिश्रा बेबाक तरीके से बयान देकर सुर्खियों में बने रहते हैं। नरोत्तम का अर्थ है नरों में उत्तम। पढ़े लिखे हैं, पीएचडी हैं, गुणवान होने के कारण मध्यप्रदेश में अपना अलग वजूद बना कर रखते हैं। गुणों के कारण ही वे शिवराज सरकार में गृह मंत्री हैं। यह अलग बात है कि वे अब तक मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।

हाल ही में दिल्ली में हुई दो दिवसीय भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक बात की चर्चा रही कि मध्यप्रदेश में जल्द ही नेतृत्व परिवर्तन अवश्यंभावी है। अब अगर नेतृत्व परिवर्तन होता है तो सवाल उठता है कि आखिर शिवराज सिंह का विकल्प कौन है? इस बात की चर्चा जब जोरों पर थी तो नरोत्तम मिश्रा को लगा कि उनका नंबर भी मुख्यमंत्री की दौड़ में लग सकता है। ऐसे में पठान फिल्म को लेकर लगे हाथ नरोत्तम मिश्रा ने खूब बयान बाजी की। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी नेता का नाम लिए चेतावनी दे डाली कि कुछ नेताओं को बड़बोलेपन पर लगाम लगाना चाहिए। मोदी ने कहा हम सब दिन रात मेहनत करते हैं, लेकिन कुछ लोग बिना किसी मुद्दे के मीडिया में बयान देकर पूरा का पूरा माहौल खराब कर देते हैं। मोदी की दो टूक से नरोत्तम मिश्रा बगलें झांकते नजर आए।

उन्होंने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया कि हमें बोलने के लिए मना किया गया है निश्चित रूप से प्रधानमंत्री जी की बात काबिले गौर है, उस पर हम सभी को ध्यान में रखना चाहिए। अब सवाल नरोत्तम मिश्रा को आखिर ऑक्सीजन कहां से मिलती है जो वह इतने बेबाक तरीके से मीडिया में बयान बाजी करते नजर आते हैं। बताया जाता है कि दिल्ली में नरोत्तम मिश्रा का खूंटा गढ़ा है और यहीं से उनको ऊर्जा मिलती है। वे अक्सर दिल्ली आया जाया करते हैं और मध्य प्रदेश की पूरी राजनीति अपने आका को बता कर आते हैं। उनका कार्यक्षेत्र दतिया है। दतिया से वे विधायक हैं और कई बार चुनकर आए हैं। पिछली बार तो वे हारते हारते जीते थे। लेकिन इस बार उनका जीतना मुश्किल नजर आ रहा है। उन्हें निपटाने के लिए उनके ही पड़ोसी एक कद्दावर नेता खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं। आलाकमान को भी मालूम है कि नरोत्तम मिश्रा कोई कद्दावर नेता नहीं है, ना ही उनका जनाधार है। उन्हें शिवराज सिंह को घेरने के लिए कहा जाता है तो बस वही काम करते हैं, इसके लिए वे खूब मीडिया में खबरें करवाते हैं। पत्रकार भी मसाला लेने के लिए उनके बंगले पर अक्सर भीड़ जुटाते हैं। इसी गलतफहमी में वे खुद को मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हुआ मान लेते हैं। ऐसी ही गलती एक दो बार कैलाश विजयवर्गीय भी कर चुके हैं।

पिछले कुछ सालों में कांग्रेस से भाजपा में आये एक नेता को भी गलत फहमी हो गई है कि वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। इसके लिए वे नागपुर से दिल्ली दौड़ लगा रहे हैं। उन्हें इतना तो समझना चाहिए कि उनके रहते ग्वालियर में कांग्रेस की महापौर सीट चली गई। क्या पता उनके खाते की और सीटें ही न चली जाएं। आजकल पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती भी सुर्खियों में हैं। हालांकि उनका राजीतिक करियर अब ढलान पर है। ढलती उम्र में लगता नहीं कि वे शिवराज सिंह को चुनौती दे पाएंगी। शिवराज सिंह के खिलाफ भले ही एंटीइनकंबेंसी फैक्टर है। जनता उनके कोरे-कोरे भाषणों से ऊब चुकी है। लेकिन भाजपा में फिलहाल उन्हें कोई टक्कर देता नजर नहीं आ रहा है। वे अभी भी सर्वमान्य कद के नेता हैं। भाजपा उनके नेतृत्व में एकजुट है। पिछले चुनाव में जनता खिलाफ थी तब भी शिवराज सिंह पार्टी को बराबरी पर ले आये थे। दस-पांच सीटों का अंतर कोई ज्यादा बड़ा अंतर नहीं होता। अब ऐसे में अब नरोत्तम मिश्रा सरीखे नेता अगर यह समझें कि वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं तो यह उनकी आत्मश्लाघा ही होगी। क्योंकि नरोत्तम मिश्रा की तरह बघेलखंड में राजेंद्र शुक्ला, बुन्देलखंड में गोपाल भार्गव, मालवा क्षेत्र के कैलाश विजयवर्गीय, कभी खुद को मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल करवाते रहे हैं लेकिन वे आज खुद को कहां पाते हैं?

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