विवेक श्रीवास्तव
मध्यप्रदेश के चुरहट में चुरहट मोहनिया टनल बस हादसे में मरने वालों का आंकड़ा 14 हो 16 हो या फिर 17, सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। फर्क विपक्ष को भी नहीं पड़ा है, अगर ऐसा होता तो पूरे विंध्य में उबाल लाने के लिए पूरी गुंजाइशें विपक्ष के पास थीं और अभी भी हैं। सरकार को हाड़ मांस के जिंदा पुतलों से मतलब है क्योंकि वही उसका वोट बैंक है। लेकिन शनिवार दोपहर तक मरने वालों के शवों के पास बिलख रही महिलाओं का रुदन यह बताने के लिए काफी है कि मृतकों के परिजनों ने बहुत कुछ खो दिया है जो अब लौटाया नहीं जा सकता है। बस हादसे में मरने वाले मृतकों का आंकड़ा 16-17 तक पहुंच गया है लेकिन आधिकारिक तौर पर 6 लोगों के ही मरने का दावा किया जा रहा है। रीवा अस्पताल की सूची के मुताबिक चार और सीधी के जिला अस्पताल की सूची के मुताबिक दो लोगों की मौत हुई हैं। ये मौतें सिर्फ इसलिए ही महत्वपूर्ण नहीं है कि यह हादसे में हुई मौतें हैं, यह मौतें इसलिए भी अहम हैं क्योंकि एक राजनीतिक दल और एक सरकार ने कैसे चुनावी नफे-नुकसान के लिए जिंदगी और मौत के फासले को झट से मिटा दिया।
हादसे के बाद सरकार पर सवाल उठ रहे हैं और उठने भी चाहिए। सवालों के दायरे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हैं और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी। राजनीतिक दलों की रैलियों, आम सभाओं में भीड़ जुटाने की परंपरा का यह नंगा सच है जो एक बार फिर सामने आया है। सभी जानते हैं कि मध्यप्रदेश में कुछ महीनों बाद ही चुनाव हैं और इन चुनावों में आदिवासी एक बड़ा फैक्टर है, जिसे साधना सभी राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती है। सत्तारूढ़ दल के पास संसाधन हैं सरकारी तंत्र है और उसे राजनीतिक ईवेंट बनाने में महारथ भी हासिल है। इस तरह की ईवेंट्स के लिए भीड़ जुटाना और भीड़ से तालियां बजवाना और नारे लगवाना जरूरी होता है। सतना में भी कमोबेश यही हुआ। बस दुर्घटना में 6 पटवारियों के घायल होने और एक पटवारी को दिल्ली रेफर किए जाने के बाद यह बताना जरूरी नहीं है कि इस तरह के आयोजनों में सरकार भीड़ जुटाने के लिए किस तरह सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करती है। विंध्य क्षेत्र के भाजपा नेता और सांसद गणेश सिंह तो इस “सफल” आयोजन पर आभार भी जता चुके हैं। यह दुर्घटना उस वक्त हुई जब भाड़े पर लाई गई भीड़ को पूड़ी सब्जी के पैकेट बांटे जा रहे थे। और इसी दौरान एक बेकाबू ट्रक ने सड़क पर खड़ी बसों में टक्कर मार दी और यह हादसा हो गया। इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कौन है यह अभी तय नहीं हुआ है। अगर तय भी हुआ तो एक-दो अफसरों की बलि चढ़ेगी और इसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह ने इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मानते हुए प्रदेश के परिवहन मंत्री से इस्तीफा मांगा है तो वही विंध्य क्षेत्र के बड़े कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी सरकार पर हमलावर हैं। चुरहट मोहनिया टनल सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले एक ही परिवार के 8 लोगों की एक साथ जलती चिताओं का मंजर क्या याद रखा जाएगा? क्या इस दुर्घटना से सबक लिया जाएगा? क्या आने वाली सरकारें, भले ही वो किसी दल की हों, वे भी राजनैतिक इवेंट की इस परंपरा को आगे बढ़ाएंगी?
हाल के सालों में इस तरह के राजनीतिक ईवेंट्स में सरकारी अमले को भी भीड़ के तौर पर शामिल किए जाने में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखने को मिली है। मध्यप्रदेश में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिकाओं और स्कूल मास्टरों को भीड़ की शक्ल में पेश किया गया। शबरी महोत्सव में भी यही दोहराया गया। शबरी महोत्सव में जो कुछ हुआ वह सभी के सामने हैं लेकिन जिन कोल परिवारों के यहां मौत ने दस्तक दी, उन शोक ग्रस्त परिवारों के यहां सांत्वना देने कितने राजनीतिक दल पहुंचे। यह सवाल खासतौर पर कांग्रेस से है जो इस तमाशे पर सबसे ज्यादा सवाल उठा रही है।