नज़रिया
सोमेश्वर सिंह
इतिहास अद्भुत पात्रों से भरा हुआ है। 16 वीं शताब्दी में एक स्पेनिश उपन्यासकार ‘मिगुल डे” ने हास्य उपन्यास लिखा।जिसका नाम था डॉनक्विक्सोट। उस जमाने में यह उपन्यास सर्वाधिक भाषाओं में अनुदित हुआ था। डॉन एक हास्यास्पद यथार्थवाद का प्रतिनिधित्व करता था। वह जटिल, दंभी व्यक्ति था। जिसका आचरण और स्वभाव हास्यास्पद था।
नायकत्व का भ्रम पाल कर वह शूरवीर बनने का फैसला करता है। एक पुराने सूट को कवच के रूप में पहनता है। और खुद-ब-खुद अपना नाम डॉन रखता है। विश्व विजेता या विश्व गुरु बनने के लिए वह घोड़े में सवार होता है। और घोड़े का नाम “रोसीनेंटे” रखता है। वह सराय को महल मानता है। सामने से आ रही भेड़, बकरियों और खतरों की भीड़ को दुश्मन की सेना माने लगता है। वह रूढ़िवादिता का शिकार है। राष्ट्रवाद का प्रबल पक्षधर है। दुर्भाग्य से वह सत्य से बहुत दूर है।
वह केवल वही मानता है, जो वह विश्वास करना चाहता है। वह शिष्ट गुणों तथा मूल्यों से रहित खोज में निकलता है। वह दुनिया को अलग ढंग से देखता है। वह ईमानदार, प्रतिष्ठित, गौरवान्वित और आदर्शवादी दुनिया बचाने के लिए घोड़े में बैठकर विश्व भ्रमण के लिए निकलता है। वह सनकी है। पागल है। किंतु बुद्धिमान भी है। एक बेहतर व्यक्ति के रूप में प्रारंभ उसकी जिंदगी की यात्रा का अंत एक दयनीय किंतु प्यारे बूढ़े के रूप में होता है। लेकिन वह सत्य से बहुत दूर है। इस तरह के पात्र हमारी आपकी जिंदगी में बिखरे पड़े हैं। ऐसे पात्रों की ताकत और ज्ञान ही उसे निष्फल कर देती है।रूढ़िवादिता तथा राष्ट्रवाद पर यह उपन्यास एक करारा व्यंग है।
शुभ की खोज में सुबह, दोपहर, शाम, रात होती है लेकिन शुभ कहीं नहीं है। हम बिखरे पड़े हैं। सूरज का उदय होगा तो अस्त भी होगा। शुभ की खोज में जीवन बीत जाता है, जैसे डॉन। क्षमा करें यदि मैं आत्मगत बात करूं, तो मैं जन्मना अभिशप्त हूं। मूल नक्षत्र में पैदा हुआ। पिताजी को शुद्धीकरण करना पड़ा। ज्योतिष के हिसाब से कुल 27 नक्षत्र होते हैं। जिनके आधार पर शुभ अशुभ का निर्धारण होता है। सबसे घातक और खतरनाक मूल नक्षत्र है। जो चंद्रमा की स्थिति पर निर्धारित होता है। मुख्य रूप से छह मूल नक्षत्र होते हैं।
हमारे डॉन ने कभी विदेशी धरती जाकर कहा था- भारत में 60 साल में कुछ नहीं हुआ। भ्रष्टाचार फैला हुआ था। हमने रामराज ला दिया। यह कहकर उन्होंने मेहनत करने वालों का अपमान किया। वह भारत की बदनामी नहीं विश्व गुरु का उवाच था। स्वनामधन्य विश्व गुरु विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बन गए हैं। कृपा करके वह डॉन ना बनें। यह एक दंभी व्यक्ति का हास्यास्पद यथार्थवाद है।
सो कॉल्ड पप्पू या लौंडा विदेश में जाकर भारत की छवि धूमिल कर रहा है और कहता है कि भारत में लोकतंत्र पर हमले हो रहे हैं। वह खतरे में है। हर जगह आवाज दबाई जा रही है। बीबीसी डॉक्युमेंट्री इसका उदाहरण है। पत्रकारों को डराया धमकाया जाता है। उन पर हमला किया जाता है। भारत में विपक्ष किसी राजनीतिक दल से नहीं, अब संस्थागत ढांचे से लड़ रहा है। भाजपा,संघ ने सभी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया। हमारी प्रमुख बनावट को बर्बाद कर रहे हैं और ऐसा विचार थोप रहे हैं जिसे भारत कभी स्वीकार नहीं कर सकता है।
विदेश में जाकर जो भी भारत की छवि धूमिल कर रहा है वह राष्ट्रदोही है। उस पर मुकदमा चलना चाहिए। चाहे वह पप्पू हो या प्रमुख। जिस विश्व गुरु के देश में बेकारी, भुखमरी, गरीबी, विपन्नता, अज्ञानता हो वह राष्ट्रवाद के नाम पर क्षम्य है। जवानी में विधवा वधू और भूखे नंगे राष्ट्र में कोई फर्क नहीं है। अब तो गर्भस्थ शिशु का डीएनए भी संस्कारित करने की सरकार ने पहल शुरू कर दी है।
(बुरा ना मानो होली है)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)