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Tuesday, Jun 6, 2023
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विचार

“मैं भारत की आवाज के लिए लड़ रहा हूं”

नज़रिया

सोमेश्वर सिंह
भारत के संसदीय इतिहास में यह पहला मौका है जब सरकार के निशाने पर विपक्ष है। राष्ट्रवाद, धर्म, देशभक्ति के नाम पर घपले घोटालों से जनता का ध्यान हटाया जा रहा है। संसद में विपक्षी दल अडाणी मामले को लेकर जेपीसी जांच कमेटी गठन की मांग कर रहा है, तो सत्ता पक्ष राहुल गांधी से लंदन में दिए गए बयान पर उनसे माफी मांगने पर अड़ा हुआ है। इसी मुद्दे को लेकर संसद में गतिरोध बना हुआ है। देखना यह है की सड़क से संसद तक पहुंची भाजपा क्या आगामी आम चुनाव में पुनः वापस सड़क पर होगी। या सड़क से संसद तक संघर्ष करने वाली कांग्रेस की सत्ता में वापसी होगी।

राहुल गांधी मोदी सरकार पर सड़क से संसद तक आक्रामक थे। भाजपा को सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करें कि अचानक बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा। और मानहानि के एक मामले को लेकर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सूरत की अदालत में राहुल गांधी को दोषी मानते हुए 2 वर्ष की सजा सुना दी। यद्यपि अदालत ने राहुल गांधी को आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए सजा को मुल्तवी कर एक महीने का समय देते हुए उन्हें तुरत जमानत दे दी। अदालत ने तो राहुल गांधी को अपील के लिए एक महीने का समय दिया था किंतु लोकसभा सचिवालय ने उन्हें चौबीस घंटे के भीतर अयोग्य घोषित करते हुए लोकसभा से उनकी सदस्यता समाप्त कर दी।

मामला साल 2019 का है। राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए नीरव मोदी और ललित मोदी का नाम लेते हुए कहा था -“कैसे सभी चोरों का नाम मोदी है”। उनका आशय देश का धन लेकर विदेश भागने वाले मोदियों से था। इसे संयोग कहें या फिर गुजरात मॉडल का एक नायाब नमूना। गुजरात के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने सूरत की एक अदालत में राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करते हुए आरोप लगाया कि राहुल गांधी के कथन से समूचे मोदी समुदाय का अपमान हुआ है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं वह भी गुजरात के हैं। मानहानि के मामले में अधिकतम सजा 2 वर्ष है। सूरत के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा ने भी सजा के मामले में कोई नरमी नहीं बरती।

अदालत ने राहुल गांधी के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा पूर्व आपराधिक इतिहास पर गौर नहीं किया और ना ही यह देखा कि राहुल गांधी ने किसी एक व्यक्ति अर्थात भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी पर निशाना साधते हुए आरोप नहीं लगाया था। उनका आशय आर्थिक घोटालेबाज मोंदियों से था। अदालत ने सजा सुनाने के पहले यह भी गौर नहीं किया कि राहुल गांधी ने किस संदर्भ में अपनी बात कही थी। किसी भी अपराध में आशय तथा उद्देश्य एक महत्वपूर्ण कारक है। लोकसभा सचिवालय के महासचिव उत्पल कुमार सिंह ने भी कोई देरी नहीं की और अदालती फैसले के चौबीस घंटे के भीतर अधिसूचना जारी करके राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त कर दी।

राहुल गांधी को सजा सुनाए जाने से लेकर उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त किए जाने में जितनी जल्दबाजी दिखाई गई है उससे तो यही आभास होता है कि यह सब प्रायोजित था। राहुल गांधी शुरू से ही आरोप लगाते रहे हैं कि संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता समाप्त कर दी गई है। उन्हें विधि सम्मत तरीके से फैसला लेने की स्वतंत्रता नहीं है। लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं में भाजपा या संघ से सम्बद्ध व्यक्तियों को बैठा दिया गया है जो सरकार के इशारे पर काम करते हैं और फैसला लेते हैं।

ऐसा लगता है कि संसदीय राजनीति में विपक्ष के नेताओं में भय और आतंक पैदा करने के लिए यह तरीका अपनाया गया है। शायद सरकार राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त करके अन्य विपक्षी नेताओं ममता बनर्जी, केजरीवाल, शरद पवार, उद्भव ठाकरे, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव को संदेश देना चाहती है कि यदि सरकार के खिलाफ आवाज उठाई तो उनका भी यही हश्र होगा। सरकार की इस कार्रवाई से राहुल गांधी डरे नहीं। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा-“मैं भारत की आवाज के लिए लड़ रहा हूं, और मैं हर कीमत चुकाने को तैयार हूं”।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की लोकप्रियता और लोकस्वीकार्यता का संदेश अभी हाल में बंगाल एवं महाराष्ट्र के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिल चुका है। जिससे सरकार डर गई है। आज चोर को चोर कहना अपराध हो गया है। नमामि गंगे से लेकर स्वच्छ भारत, राफेल का मामला, नोटबंदी, सेंट्रल विस्टा, पीएम केयर्स फंड, पेगासस, सार्वजनिक उपक्रमों को बेचना, डांवाडोल अर्थव्यवस्था सहित अन्य स्कैम आगे आगामी लोकसभा आम चुनाव में चुनावी मुद्दा ना बन जाए। इसलिए सरकार को पाक साफ दिखाने की कोशिश हो रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियां विपक्षी दल और उनके नेताओं के खिलाफ जांच के नाम पर सरकार का हित साध रही हैं।

सरकार के विधायक, सांसद से लेकर मंत्री तक आए दिन हेट स्पीच देते हैं। सरकार विपक्षी दल के नेताओं के साथ हेट एक्ट करती है। लेकिन कोई भी संवैधानिक संस्था या सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती। राहुल गांधी को मानहानि में सजा के मामले में आखिर सरकार ने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई। कम से कम सदस्यता समाप्त करने के पहले उन्हें कारण बताओ सूचना देनी चाहिए थी। व्यक्तिगत घृणा, चारित्रिक हनन तथा राजनीतिक अस्पृश्यता की ऐसी राजनीति इसके पहले भारत में कभी नहीं हुई। भारतीय जनता पार्टी ने और उसके नेताओं ने नेहरू, इंदिरा, राजीव से लेकर सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी तक न जाने कितने व्यक्तिगत और लांछित करने वाले आपत्तिजनक आरोप लगाए। कभी हाइब्रिड या पप्पू कहा।

भारत में अब फासिज्म का खतरा नहीं बल्कि फासिज्म आ चुका है। यदि सभी विपक्षी दल कांग्रेस के साथ साझा मोर्चा बनाकर संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए संसद के बजाय सड़क पर नहीं उतरते तो यह आत्मघाती होगा। बल्कि भारत को अंधेरे और बियाबान भविष्य की ओर जाने से नहीं रोका जा सकता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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