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Tuesday, Jun 6, 2023
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विचार

सड़क से संसद तक का मौन सुप्रीम कोर्ट ने तोड़ा

नज़रिया

सोमेश्वर सिंह
आज एक अखबार के मुखपृष्ठ पर सुर्खियों पर छपी खबरें पढ़कर मुझे सुप्रसिद्ध शायर फैज़ अहमद फैज़ का एक तराना याद आ रहा है। जिसकी चंद लाइने इस प्रकार है-

दरबार ए वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे कुछ अपनी जजा ले जाएंगे।
ए खाक नशीनों उठ बैठो वो वक़्त करीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराए जाएंगे जब ताज उछाले जाएंगे।

फैज साहब ने यह नज़्म सियासत के जिस सूरते हाल में लिखी थी। कमोबेश कुछ ऐसा ही माहौल हमारे मुल्क में है। शाहीन बाग, जेएनयू मूवमेंट, किसान आंदोलन, तबलीगी जमात, कोविड-19, जीएसटी, नोटबंदी से लेकर राफेल घोटाला, जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत, राष्ट्रद्रोह, राष्ट्रभक्त और न जाने कितने मामलों को सरकार ने बेशर्मी के साथ जमींदोज कर दिया। लेकिन वक्त ने करवट बदली। खामोश,भयग्रस्त, लहूलुहान संविधान ने आंखें खोली। धन्यवाद है बाबा साहब अंबेडकर को जिन्होंने हमारे महान भारत देश के भविष्य को संविधान लिखकर सुरक्षित रखा।

हथौड़े की मानिंद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो अधिकार संविधान ने दिया था, उसे सरकार ने सड़क से संसद तक खामोश कर दिया। लेकिन कहते हैं कि टाइगर अभी जिंदा है। कानून और संविधान की रक्षा करने वाली सर्वोच्च संवैधानिक संस्था न्यायपालिका ने बहुत दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट के डायस पर उसी हथौड़े को ठोका। जो मुल्क की आवाज बन गया। जिसकी प्रतिध्वनि अखबार की सुर्खियों पर देखी जा सकती है। सबसे दिलचस्प मामला है राहुल गांधी को मानहानि मामले में सुनाई गई सजा का। राहुल गांधी ने सजा को मुल्तवी कराने के लिए गांधीनगर गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की है। जिसकी सुनवाई जस्टिस गीता गोपी को करनी थी परंतु उन्होंने सुनवाई करने से इंकार कर दिया। कार्यवाहक चीफ जस्टिस ने मामले को सुनवाई के लिए दूसरे जस्टिस हेमंत को सौंपा।

जस्टिस गीता गोपी राहुल गांधी के मामले से सुनवाई करने से पीछे क्यों हटे। यह शोध का विषय है। क्या उन पर कोई दबाव था? गुजरात में ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक राहुल गांधी के मामले में जो कुछ हो रहा है वह चिंता का विषय है। गुजरात मॉडल क्या यही है। जिसे जम्मू कश्मीर राज्य की तरह अघोषित रूप से कोई विशेष दर्जा प्राप्त हो गया है। फर्स्ट लीड की खबर थी-हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सभी राज्यों को दिशा निर्देश, धर्म की परवाह किए बिना ने स्वत: दर्ज करें एफआईआर ताकि देश में धर्मनिरपेक्ष चरित्र को सुरक्षित रखा जा सके और यदि नफरती भाषणों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही भाजपा सांसद तथा ओलंपिक कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने देह शोषण का आपराधिक मामला दर्ज किया। भारतीय रेसलरों की यह बड़ी जीत है। वे पिछले एक साल से कुश्ती संघ अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। अब उन्होंने ऐलान कर दिया है कि जब तक बृजभूषण सिंह पद से इस्तीफा नहीं देंगे, या हटाए नहीं जाएंगे और उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी तब तक उनका धरना चलता रहेगा। एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के तथाकथित माफिया अतीक-अशरफ की हत्या के मामले पर उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया है कि उन्हें अस्पताल ले जाने की जानकारी हत्यारों को कैसे मिली, उन्हें पैदल अस्पताल क्यों ले जाया गया। एंबुलेंस में क्यों नहीं ले जाया गया।

अखबार में एक अन्य महत्वपूर्ण खबर है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की याचिका खारिज करते हुए शिवसेना की चल अचल संपत्ति सौंपने से मना कर दिया है। आज ही केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान के संजीवनी घोटाले में अदालत के दखल के बाद आरोपी बना दिया गया है। इन खबरों से पता चलता है कि भारत में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। अराजकता का आलम है।

सुप्रीम कोर्ट के सख्त होने के बाद भी सरकार आक्रामक बनी हुई है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक से सीबीआई ने 5 घंटे पूछताछ की। मलिक ने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए 2 फाइलों-कर्मचारियों के समूह चिकित्सा बीमा योजना तथा कृषपन बिजली योजना के सिविल कार्य की मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपए रिश्वत के पेशकश का आरोप लगाया था। एक कहावत है “चोर चौतरा नाचे शाह को फांसी होय” चरितार्थ हो रही है। बैंक का धन लूट कर विदेश भागने वाले उद्योगपतियों, बलात्कारियों, हत्यारों पर कार्रवाई नहीं की जाती। इनके खिलाफ आवाज उठाने वालों पर कार्रवाई की जाती है। अभी हाल में एक भाजपा विधायक ने सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए सोनिया गांधी को विषकन्या कहा।
आज अंतर्राष्ट्रीय मई दिवस है। हथौड़ा मजदूरों की मेहनत, ईमानदारी, राष्ट्रभक्ति और दुनिया के समृध्दि का प्रतीक है। और वही हथौड़ा न्यायपालिका में भी सत्यमेव जयते का प्रतीक है। भारत का संविधान खतरे में है सरकार संवैधानिक ढंग से नहीं चल रही है। लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है। ऐसे घटाटोप अंधियारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से एक हल्की सी रोशनी की किरण दिखाई देने लगी है कि शायद भारत का संविधान बच जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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