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Tuesday, Jun 6, 2023
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काहे के राजा और कैसे महाराज

वे अभी भी अपने घरेलू कैलेंडर में खुद को ‘महाराज’ और
‘युवराज’ लिखते हैं। फिर कैसे मान लिया जाये कि उन्होंने खुद को लोकतंत्र के अनुरूप ढाल लिया है। देश में कानून बनाकर राजतंत्र के दौर की ‘राजा’ ‘महाराज’ जैसी पदवियां समाप्त कर दी गयी हैं लेकिन वे आधुनिक बनना ही नहीं चाहते। उम्र में तीस चालीस साल बड़े लोग ‘युवराज’ के पैर छूते हैं और वे सहज भाव से ऐसा करने देते हैं। बानमोर में एक होटल के उद्घाटन के समय ऐसा ही हुआ। पांच बार संसद सदस्य रहे अशोक अर्गल तक नहीं समझ पा रहे थे कि करें तो करें क्या।

अब ज्योतिरादित्य सिंधिया जी शिवपुरी की सभा में जनता से माफ़ी मांग रहे थे। किस बात की माफ़ी? सत्ता की खातिर दल और विचार बदलने के लिए?

ग्वालियर के मुरार में गणेशी लाल सेन ने गांधीजी जी से प्रभावित होकर अपना पुश्तैनी घर कांग्रेस को दफ्तर के लिए दे दिया था। खुद सड़क पर आ गये थे। जो खुद को ‘महाराज’ कहते हैं वे जमीनों पर दावे और कब्जे करते ही चले जा रहे हैं। एक लोकसभा चुनाव हारने के बाद अगले चुनाव की तैयारी करते। अपनी गलतियों पर विचार करते। ऐसी भी क्या जल्दी थी पिछले दरवाजे से संसद में जाने की।

डॉ. लोहिया ने पिछले दरवाजे से संसद में जाना कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने तो ग्वालियर से बिलौआ गांव की सफाई कर्मी सुख्खोरानी को रानी के खिलाफ चुनाव में उतारा था। यह कहते हुए कि ग्वालियर का चुनाव भारत में लोकतंत्र और सामाजिक परिवर्तन का वाहक बनेगा। लेकिन अफ़सोस उस चुनाव के साठ साल बाद भी लोग अपने से तीस साल छोटे के पैर छू रहे हैं और वे अपने घर से कैलेंडर छाप कर खुद को ‘महाराज’ और ‘युवराज’ लिखे ही जा रहे हैं।
(पत्रकार जयंती तोमर की फेसबुक वॉल से।)

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