नज़रिया
सोमेश्वर सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र कुमार मोदी कल नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। तमिलनाडु के पुरोहित मंत्रोचार के साथ प्रधानमंत्री का राज्याभिषेक करके राजदंड सौंपेंगे, तिलक लगाएंगे। हो सकता है राजमुकुट भी पहना दे। भारत के संसदीय इतिहास में कल का ऐतिहासिक दिन होगा। कल ही हिंदू हृदय सम्राट वीर सावरकर का जन्मदिन है। सावरकर तो अंग्रेज बहादुर सरकार से माफीनामा लिखकर जेल से बाहर आए थे। कल उनकी आत्मा अंग्रेजों के उसी राजदंड को लेकर नवीन संसद भवन में प्रवेश कर जाएगी। कहा जाता है कि हिंदुस्तान की आजादी के बाद सत्ता हस्तांतरण के समय अंग्रेजों ने इस राजदंड को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था और नेहरूजी ने इस राजदंड को इलाहाबाद के संग्रहालय में संरक्षित कर दिया।
संघी और भाजपाई जिस नेहरू को पानी पी पीकर गाली देते हैं, उनकी यही गलती थी कि उन्होंने राजदंड को संग्रहालय में रख दिया। अच्छा होता कि वे राजदंड के साथ संसद में प्रवेश करते। मोदीजी की तरह ही संसदीय परंपराओं को लतिया देते। विपक्ष की आवाज न सुनते। माइक बंद करा देते। बिना किसी चर्चा के नियम, कानून, कायदे पास करा लेते। सदन का कोई भी सदस्य उनकी कारगुजारी उजागर करता तो उसकी सदन से सदस्यता रद्द करा देते। अयोग्य घोषित कर देते।
नेहरूजी इसी राजदंड को लेकर देश विदेश का दौरा करते। भारत में बड़े-बड़े कल कारखाने और सिंचाई परियोजनाओं की स्थापना करके उन्हें आधुनिक भारत का तीर्थ स्थल ना कहते। महंगाई, बेरोजगारी, पिछड़ापन उनकी प्राथमिकताएं नहीं होती। मोदीजी की तरह वह भी अयोध्या, काशी, मथुरा के मंदिरों का भूमि पूजन करते। भारत के संविधान में लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का समावेश नहीं कराते। संविधान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए जाने पर जोर नहीं देते। पाखंड,अंधविश्वास और ढोंग फैलाने वाले तथाकथित बाबाओं को महिमामंडित नहीं करते। उन्हें जेड प्लस सुरक्षा प्रदान ना करते।
शायर रज्मी साहब “कैरानवी” का एक शेर है- “ये जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने, लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई”। ब्रिटिश और रोमन साम्राज्य में राजदंड की परंपरा थी। आज भी जब ब्रिटेन का कोई प्रिंस सम्राट घोषित किया जाता है तब उसे राज शक्ति प्रतीक के रूप में राजदंड सौंपा जाता है। राजमुकुट पहनाकर राज सिंहासन पर आरूढ़ किया जाता है। शायद भारत की तरह वहां पुरोहितों द्वारा मंत्र उच्चारण करके राज तिलक करने की धार्मिक परंपरा ना हो। लेकिन मोदी जी उद्घाटन के साथ संसद में संभवतः उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए प्रवेश करें। यदि नेहरुजी ने आजादी के बाद इस राजदंड को धारण कर लिया होता तो 70 साल तक भारत की जनता को बकौल मोदी जी कष्ट ना भोगना पड़ता।
इतिहासकारों के मुताबिक भारत में राजदंड की परंपरा चोल वंश के जमाने से चली आ रही है। तमिल भाषा में राजदंड अर्थात सेंगोल जिसका शाब्दिक अर्थ है “सच्चाई धर्म और निष्ठा”। हिंदुस्तान की आजादी के साथ ही सत्ता हस्तांतरण के मसले पर यह बात आई थी। राजे रजवाड़े चाहते थे कि अंग्रेज सत्ता हस्तांतरण के बाद हिंदुस्तान उनके हाथ में सौंप दें। अंग्रेजों की भी यही मंशा थी। किंतु गांधी, नेहरू और पटेल ने जन आकांक्षाओं के अनुरूप ऐसा नहीं होने दिया। नेहरू बिना राजदंड के ही उसके सच्चाई धर्म और निष्ठा के मानकों के अनुरूप निरंतर जनता की सेवा करते रहे। भारत के संविधान की स्थापना की गई। भारत को संप्रभु गणराज्य घोषित किया गया। भारत के लोगों के अधिकार सुरक्षित किए गए।
भारत का संविधान और उसके अनुरूप गांधी नेहरू के कार्यक्रम और योजनाएं ही मोदी जी के लिए सबसे बड़ी बाधक है। कर्नाटका की जनता ने विधानसभा चुनाव में मोदीजी के लोकप्रियता में भले बट्टा लिखा दिया हो लेकिन विदेश में उनका डंका बज रहा है। अभी हाल में आस्ट्रेलिया के सिडनी में वहां के भारतीय मूल निवासियों ने एक कार्यक्रम आयोजित किया इसमें भारत के प्रधानमंत्री मोदीजी के साथ ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री अल्बनीज को भी आमंत्रित किया। मोदीजी ने अपने उद्बोधन में कहा-“भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी है, हमारे लिए पूरी दुनिया एक परिवार है।” मोदी जी के स्वागत में आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री “मोदी इज द बॉस” से संबोधित किया। गोदी मीडिया को कर्नाटका हार से मुंह छुपाने के लिए बहाना मिल गया और गोदी मीडिया राग अलाप रहे हैं कि मोदी जी का विदेश में डंका बज रहा है।
मोदी जी को मेरी सलाह है कि कर्नाटका की जनता को राजाज्ञा उल्लंघन की सजा अवश्य दें। नहीं तो मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्य के चुनावों में मतदाताओं का मनोबल बढ़ जाएगा। इसलिए अभी से गृहमंत्री को राजदंड थमा दें। आगे-आगे मोदी चलें और उनके पीछे अमित शाह राजदंड लेकर चलें। सीबीआई और ईडी भी साथ रहे। जब भी विपक्षी दल का कोई नेता राजाज्ञा उल्लंघन करते देखा जाए उसे तत्काल दंड दें। नहीं तो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद संसद भवन में राजदंड सुरक्षित नहीं रह पाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)