नज़रिया
सोमेश्वर सिंह
जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब व्यक्ति अति महत्वाकांक्षा पाल लेता है तो फिर कभी-कभी उसके अनपेक्षित परिणाम निकलते हैं। कमोवेश मध्य प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में यही संभावना दिखाई दे रही है। एंटी इनकंबेंसी का अति आत्मविश्वास भी कहीं कांग्रेस को ले ना डूबे। मध्य प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह उस दल के निर्वाचित सदस्यों की संख्या बल पर निर्भर करता है। बुनियादी शर्त संख्या बल है। प्रारंभिक तौर पर भाजपा में भले कितनी भी अंर्तकलह दिखाई दे रही हो किंतु अंततः पार्टी के अनुशासन और एकता की रणनीति बनाकर डैमेज कंट्रोल कर लिया जाता है। लेकिन कांग्रेस में इसका अभाव है। चुनावी बिसात जमाने में भाजपा कांग्रेस से आगे निकल गई है इसीलिए उसने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी। परंतु मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व ने पार्टी के बड़े नेताओं को संभावित मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते हुए जानबूझकर सुनियोजित तरीके से कद छोटा करना शुरू कर दिया है। कमलनाथ कांग्रेस के कालिदास बन गए हैं। जिस डाल में बैठे हैं उसी को काट रहे हैं। कमलनाथ के अदूरदर्शिता तथा बड़बोलेपन के कारण पहले ही चंबल संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत करके कांग्रेस के कमजोर कर दिया है। यही हाल मालवा का है। पिछड़े वर्ग के दो स्थापित कांग्रेस नेता अरुण यादव तथा जीतू पटवारी के साथ यही व्यवहार किया गया। उन्हें भी कांग्रेस की कार्य समिति में शामिल नहीं किया गया।
बचा महाकौशल और विंन्ध्यप्रदेश। महाकौशल से कमलनाथ और उनके सिपहसालार विवेक तन्खा स्वत: प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही विन्ध्य में कांग्रेस की जड़े खोदकर मठा डालने का काम शुरू कर दिया। पहले तो विधानसभा में विश्वासघात करने वाले कांग्रेस के निष्कासित विपक्ष के उपनेता चौधरी राकेश सिंह को कांग्रेस में शामिल कर उन्हें रीवा संभाग में संगठन प्रभारी बनाया गया। मुखरित विरोध के बाद हटा दिया गया। और उसके बाद मैहर की सभा में कमलनाथ ने घड़ियाली आंसू बहाते हुए कहा यदि रीवा संभाग से कांग्रेस की कुछ और सीटें आ गई होती तो उनकी सरकार न गिरती। जो सीटें आ गई थी उन्हें संभाल नहीं सके। जहां नहीं आई उसका रोना रो रहे थे।
विंध्य प्रदेश में कांग्रेस का पिछड़ा वर्ग में राज्यसभा सदस्य राजमणि पटेल का एक बड़ा चेहरा था, लेकिन अकारण उन्हें पिछड़ा वर्ग कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर एक नौसिखिया सतना विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को अध्यक्ष बना दिया गया। कमलनाथ यहीं नहीं रुके, सिद्धार्थ कुशवाहा को सतना नगर निगम में कांग्रेस का प्रत्याशी भी बना दिया गया। शायद कमलनाथ जी को सतना के राजनीति का इतिहास नहीं मालूम। स्वर्गीय अर्जुन सिंह सतना सांसद रह चुके हैं। उसके पहले भी उन्होंने अजीज कुरैशी को सतना लोकसभा चुनाव जिता कर दिल्ली भेजा था। कमलनाथ भी स्वत: अर्जुन सिंह के भरोसे छिंदवाड़ा से चुनाव जीत कर पहली मर्तबा लोकसभा पहुंचे थे। अजय सिंह राहुल ने भी प्रदेश में भाजपा की सरकार रहते सतना जिले की दो विधानसभा सीट चित्रकूट और रैगांव के उपचुनाव में चुनावी मोर्चा संभालते हुए कांग्रेस को जीत दिलाई थी।
कमलनाथ मुगालते में हैं। विन्ध्य प्रदेश खासतौर से रीवा संभाग में अजय सिंह राहुल को दरकिनार करके कांग्रेस चुनावी वैतरणी पार नहीं कर सकती। लोकतंत्र में चुनावी हार जीत होती रहती है। चुनाव हारने के लिए तो श्रीमती इंदिरा गांधी, अर्जुन सिंह, राहुल गांधी भी चुनाव हारे हैं। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के विश्वसनीय कैलाश नाथ काटजू तक को मध्य प्रदेश में चुनाव हरा दिया गया था। राजनीति में लोकस्वीकार्यता तथा नेतृत्व क्षमता के आधार पर आकलन किया जाता है। अजय सिंह राहुल के नेतृत्व क्षमता तथा कुशल चुनावी रणनीति के कारण ही सीधी लोकसभा के चुनौतीपूर्ण उपचुनाव में मानिक सिंह सांसद चुने गए थे। शायद कमलनाथ जी बाज और मुर्गी में अंतर समझ नहीं समझते। बाज अनंत आकाश में उड़ान भर सकता है और जरूरत पड़ने पर नीचे धरातल तक पहुंच के मुर्गी को झपट्टा मार सकता है। किंतु मुर्गी बाज की तरह ऊंचे आकाश में नहीं उड़ सकती।
राजनीति में सफल राजनेता के लिए दो गुणों का होना बहुत जरूरी है। पहला उसकी राजनीतिक दृष्टि और दूसरा राजनीतिक दूरदर्शिता। यह ज्ञान और अनुभव से प्राप्त होती है। रामायण कथा में दो पात्र हैं। एक संपाती और दूसरा जटायू। दोनों ही गिध्द भाई-भाई थे। एक मर्तबा दोनों भाइयों ने सूर्य को छूने की ठानी। दोनों सूरज के जितना करीब पहुंचते गए ताप बढ़ता गया। जटायु बीच रास्ते से वापस लौट आया। संपाती ने सूरज को छू तो लिया किंतु उसके पंख जल गए। पंखहीन संपाती जीवन भर जमीन पर रहकर जीवन यापन करता रहा। सीता हरण के बाद किसी को नहीं पता था की सीता माता कहां है। सीता की खोज में निकले बंदरों को संपाती ने ही लंका और अशोक वाटिका का पता बताया था। क्योंकि उसके पास दूरदृष्टि थी।
कमलनाथ जी आप या आपकी कांग्रेस पार्टी सॉफ्ट हिंदू कार्ड खेलकर कट्टर हिंदूवादी भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकते। चाहे बागेश्वर धाम में जाकर मत्था टेकें या फिर हनुमान भक्त बन जाए। या फिर दिग्गी राजा की तरह बजरंग दल में अच्छे बजरंगी खोजें। सांप्रदायिकता और फासिज्म से मुकाबला करना है तो राहुल गांधी से सीखें। उनकी तरह बेलाग बात करें। पंडित जवाहरलाल नेहरू की तरह साफ वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनायें। क्योंकि अगला चुनाव लोकतंत्र और संविधान के जीवन मरण का चुनाव है। आपके मुख्यमंत्री पद से ज्यादा महत्वपूर्ण यह मुल्क है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)