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Thursday, Dec 7, 2023
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फर्जी जाति प्रमाणपत्र के सहारे ईएनसी बन बैठे नरेंद्र कुमार!

भोपाल (देसराग)। मप्र वाकई अजब है…गजब है। इस बात को लोक निर्माण विभाग के ईएनसी नरेंद्र कुमार ने साबित कर दिया है। नरेंद्र कुमार के तीन जाति प्रमाणपत्र सामने आए हैं। हैरानी की बात यह है की फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के सहारे नरेंद्र कुमार ने न केवल इंजीनियरिंग किया, बल्कि निरंतर पदोन्नति पाते हुए ईएनसी बन गए हैं। अब इस मामले में ईओडब्ल्यू व अजा विभाग ने लोक निर्माण विभाग के ईएनसी के खिलाफ फर्जी जाति प्रमाणपत्र से इंजीनियर बनने तथा इस पद तक पहुंचने का प्रकरण दर्ज कर जांच में लिया है।
गौरतलब है कि मप्र में एससी-एसटी की फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनवाकर सरकारी नौकरी हासिल करने वालों की कमी नहीं है। सैकड़ों मामले जांच प्रक्रिया में हैं। लेकिन लोक निर्माण विभाग के ईएनसी के फर्जी जाति प्रमाणपत्र मामले ने अधिकारियों को हैरानी में डाल दिया है। आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है कि अब इस मामले में लीपापोती की जानकारी भी सामने आई है। अब यह मामला गहरा गया है।
तीन अलग-अलग वर्षों में अलग-अलग बने जाति प्रमाणपत्र
अभी तक की जांच में यह बात भी सामने आई है कि ईएनसी नरेंद्र कुमार का जाति प्रमाण पत्र तीन अलग-अलग वर्षों में अलग-अलग बना है। पहला जाति प्रमाणपत्र झाबुआ में वर्ष 1979 में शपथ पत्र के आधार पर बनवाया। दूसरा ग्वालियर से इसी वर्ष में बनवाया। तीसरा एमएसीटी में एडमिशन के वक्त वर्ष 1983 में बनवाया। इसके बाद वे इसी प्रमाणपत्र के आधार पर सबसे पहले सहायक इंजीनियर बने, इसके बाद लगातार पदोन्नति होते हुए ईएनसी तक पहुंचे। गौरतलब है कि जनजातीय कार्य विभाग व अजा विभाग में फर्जी जाति प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी हासिल करने के दर्जनों मामलों में जांचें चल रही हैं। इन सभी में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में गठित उच्चस्तरीय छानबीन समिति ने जांच शुरू की है।
स्कूलों के छात्रवृत्ति रजिस्टर में नाम ही नहीं
नरेंद्र कुमार की जाति शुरू से विवादों में है। लोक निर्माण विभाग की जांच में इस बात की जानकारी भी सामने आई कि ईएनसी के पिता उत्तर प्रदेश से मप्र में आए, उस वक्त उनकी जाति अलग थी। इनकी जाति कोली है, यह जाति उत्तरप्रदेश में पिछड़ा वर्ग में आती है, किंतु उन्होंने शपथपत्र में दिया कि उनकी जाति कोली है, और वे अनुसूचित जाति में आते हैं। एक बड़ा तथ्य यह है कि उन्होंने जहां भी अध्ययन किया और अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र के आधार पर छात्रवृत्ति प्राप्त की, उन स्कूलों में छात्रवृत्ति रजिस्टर में उनका नाम दर्ज ही नहीं है। ऐसे में उन्होंने कैसे व किस तरह से इस प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी की और अब तक लाभ लेते रहे, यह भी संदेह के दायरे में आ गया है। अनुसूचित जाति विभाग ने उनके मामले को उच्च स्तरीय छानबीन समिति के समक्ष रखकर जांच शुरू कर दी है।
शपथपत्र के आधार पर बनवा लिया जाति प्रमाणपत्र
नियमानुसार किसी भी व्यक्ति के जाति प्रमाणपत्र के लिए नियम बना है कि कोई भी व्यक्ति जो अपने मूल राज्य को छोड़कर किसी अन्य राज्य में निवास करता है, तो उसे वर्ष 1950 के पहले का प्रमाण देना होता है कि वह उक्त समय में उक्त जाति का था। किंतु ईएनसी ने 1950 के पहले का प्रमाणपत्र नहीं दिया इसके बजाय शपथ पत्र के आधार पर जाति प्रमाणपत्र बनवा लिया। बताते हैं कि इस तरह के कई मामले अदालतों में चल रहे थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय पारित कर कहा कि जाति प्रमाणपत्र के लिए 1950 के प्रमाण ही तथ्यात्मक होंगे। इसके बाद किसी के प्रमाण पत्र नहीं बन पाए। किंतु जिन्होंने प्रमाण पत्र बनवा लिया था, वे इसका लाभ लेते रहे हैं। अब यह मामला उलझ गया है।

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